Pages

Tuesday 23 September 2014

अच्छे दिन कैसे आएंगे?

हिंदुस्तान के एक आधुनिक  शहर के रामलीला मैदान में सब्जी मंडी लगती है । ये मैदान अब तक दो भागों में बँटा  हुआ था। एक तरफ (जब रामलीला या शादी - ब्याह न हो तब ) सब्जी लगती थी और एक तरफ सभ्य समाज  दुआरा कूड़ा फेंका जाता था । सुवह हो या दोपहर या फिर शाम नजारा देखने लायक होता था । सुवह - लोग साइकिलिंग करते हुए, जागिंग करते हुए, वॉकिंग करते हुए, टॉकिंग करते हुए, सिंगिंग करते हुए, दातुन करते हुए, कुत्तों को ताजी  हवा खिलाते हुए  हाथों में कूड़ा लिए नज़र आ जाते थे। 

सुबह नौ से दस के बीच का नजारा और भी आधुनिक हो जाता था । रंग -विरंगी, मँहगी से मँहगी वाइक्स आकर रूकती और कूड़ा फेंकते हुए आगे बढ़ जातीं । ये समय घर से ऑफिस जाने का होता है । दोपहर में मम्मियाँ सजी - संवरी बच्चों को स्कूल से लेने निकलती तो सोचती चलो कूड़ा भी फ़ेंक ही देते है। शाम को भी जिन्हें सब्जी खरीदना  होती थी आते और डरते -डरते कूड़े की तरफ बढ़ते। क्यों की सांडों और कुतो का जमघट भी तो बहीं लगता था।  कभी कभी तो ऐसा लगता था की सुनामी या भूकम्प आ गया हो क्यों की लोग भागते ही ऐसे थे पता चलता था सांड लड़ पड़े या भाग खड़े हुए। कभी - कभी मुझे लगता था कि जितने जन यहाँ सब्जी बेचते है उनकी तो मजबूरी है और सालों से जो लोग सब्जी खरीदने आ रहे है या दस दिन रामलीला का आनंद ले रहे है उन्हें तो बदबू सुंखने का रिकॉर्ड बनाने के लिए गिनीज  बुक में दर्ज होना चाहिए। 

परेशान होकर एक जन प्रतिनिधि ने बहां से कूड़ा उठबाने के लिए कमर कस ली।  उसने कूड़ा हटबाने  के साथ ही पहरेदार भी नियुक्त कर दिए। जो भी कूड़ा फेंके उसे ससम्मान उसका कूड़ा बिना देर लगाये बापस कर दो ।  सुबह, दोपहर शाम बस यही नज़ारा था और तो और रात में भी एक तरफ जागते रहो दूसरी तरफ भागते रहो का ड्रामा चल रहा था। उस बेचारे ने तो जैसे बर्र के छत्तों में ही हाथ डाल दिया था इससे सुसंस्कृत जनता तो क्रोधित हुई ही जिनके पेट पे लात पड़ी उन्होंने पुलिस से शिकायत कर दी। गुस्से में भरे लोग एक दूसरे के दरबाजे पर कूड़ा फेंकने लगे देखते ही देखते हर गली कूड़े का अम्बार बन गयी। जब बिपक्ष के नेताओं ने हल्ला मचाया तो आनन फानन में पुलिस जगी और बेचारे को सलाखों के पीछे जाना पड़ा, परिवार को आमरण अनशन करना  पड़ा मामला अदालत तक पंहुचा। कैसे कैसे इल्जाम लगे कूड़े के बदले पैसे खाएं है। कमाल है कूड़े में भी भ्रस्टाचार ? मगर बह व्यक्ति बिलकुल पाक  साफ था उसकी ये पहल भी जन हित में थी। कुछ लोग ऐसे भी थे जो चाह कर भी कुछ नही कर  पा रहे थे। उनसे तो उसे आशीष ही मिला होगा। जिन लोगों के दिमाग में कचरा  भरा था बो अच्छे बुरे में फर्क नही कर सकते थे। उसने बार गलियां साफ करबाई कूड़े वाली गाड़ी मगबाई जिसमें लोगों से कूड़ा डालने की अपील घर -घर पेम्पलेट बटबा कर की। लेकिन लोग तो लोग है जो मजा चोरी छुपे कूड़ा फेंकने में हैं बो गाडी में फेकने में कहाँ?

मैदान तो साफ है फिर भी कोने गन्दगी से भरे ही रहते है। बहां न सही रोड के किनारे कूड़ा अपने पांव पसार रहा है क्यों की डस्टबिन भी लोग ही नही रखने दे रहे है। पर क्यों? किसी को क्या परेशानी हो सकती है ऐसे कूड़ा मारा - मारा फिरता है उसमें तो किसी का भी हित नही है। अपने पड़ोसी को एक पल प्यार से न देखने वाले लोग मोदी जी से चाहते हैं पल भर में अच्छे दिन ले आएं.। अच्छे दिन सिर्फ मोदी जी ही नही ला सकते? सच तो ये है की अच्छे दिन कभी नही आयेगे अगर जनता की सोच ऐसी ही रही तो!!!