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Saturday 3 June 2017

जून लाया मानसून (बाल कविता )

मई गई अब आया जून 
संग ले आया मानसून 
रिमझिम बरसेंगे बादल 
मथुरा हो या देहरादून 
नींबू नमक संग चटखारे 
बेंच रहे हैं भुट्टे भून 
मच्छरों से बच कर रहना 
वरना पी जायेंगे खून 

बिल्ली और कौआ पर - बाल कविताएं


           एक
बिल्ली रानी हुई सयानी
चूहे नहीं खायेगी मानी
अच्छा नहीं है मांस को खाना
देर हुई पर उसने माना
जब मैं आऊं नहीं भगाना
घर में जो हो ,दे देना खाना
दूध पियेगी ,खायेगी रोटी
रहना है स्वस्थ ,नहीं होना मोटी
कहीं मिल जाये, अगर विरयानी
थोड़ा ही खायेगी और पियेगी पानी
                   
                    दो
कौआ तेरा काला रंग
और तेरी काँव -काँव
अब तो बहुत याद है आती
तेरी कर्कश बोली, बहुत सुहाती
अपने घर के गमलों के पास
लगा कर हम बच्चों ने आस
पानी और रोटी रक्खी है
उम्मीद लगा के रक्खी है
कभी इधर भी उड़ आना
आकर रोटी खा जाना
फिर तेरी फोटो खींचेंगे
कमरे में अपनी टाँगेंगें
याद तुम्हारी आई तो
वही देख खुश हो लेंगे

जाने कैसी हवाएं चली हैं ( मानवता को पुकारती एक कविता)


जाने कैसी हवाएं चली हैं 
सारी फिजाएं बदली सी हैं 
१ -आदमी पहले ऐसा नहीं था 
मानवता थी ह्रदय में ,स्वार्थ से परे था  
कुछ  दिन से उसको भी कुछ हुआ है 
जहरीली हवाओं ने उसको छुआ है 
खोलता है जुवां आग ही उगलता है 
दुखाने को दिल, हर पल मचलता है 
दुःख और क्रोध की फ़ैल रही माहमारी 
२ -रहती न इंसान को कोई बीमारी 
मन  की बातें कोई , सुन लेता सारी  
रोगों ने इनको पकड़ के रखा है 
अंर्तद्वंद्ध ने जकड़ के रखा है 
संघर्षों में कितने अकेले पड़े हैं 
अपने  हैं तो  मगर ,पीछे खड़े हैं 
तिरस्कारों से मन हुए  हैं भारी 
३-जीने का तरीका बिल्कुल ही बदल गया 
शांति से साँस लेना मुश्किल हो गया 
ऐसे तो जीवन चल न सकेगा 
नरक की ज्वाला में जलना पड़ेगा 
रिश्तों को पुर्नजीवन देना पड़ेगा 
संभलना जरूरी है,करना पड़ेगा
वरना  ये समझो , जिंदगी हारी