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Thursday 31 August 2017

आया था इस बार भी सावन (कविता)

 गुत्थियों सा है जीवन
जिनका हल ढूंढते -ढूढते
उलझ सा गया है मन

आभास था
अह्सास कब हो पाया ,अब जाने को भी है
आया था इस बार भी सावन

हरे -हरे अंधेरों से पटे पड़े खेत
धूप में चमचमाता, ठहरा चाँदी सा पानी
पपीहे का स्वर हो या कीटों की मधुर झंकार
कागज़ की नावें, उनमें रखी पत्तों की पतवार 
सब गायब होने को है ,अब जाने को भी है
आया था इस बार भी सावन

राखियों से सजी मनमोहक दुकानों को खूब निहारा 
खरीदा और लिफाफे में डाल भेजा भी 
सिंधारे की बँटी मिठाई भी खाई ,घेवर की खुशबू जैसे हर कोने में समाई 
कुछ समझ में आया तो 'वीर' की याद बहुत आई 
आंखें भी नम होने को हैं ,अब जाने को भी है 
आया था इस बार भी सावन ।
अलका सिंह

बादल (कविता)

हौले-हौले कभी सरकते
कभी दौड़ लगाते बादल
आँखें तकती ही रह जातीं
कौन डगर बरसेंगे बादल।
धूप कांच सी,कभी छांवअंधेरी
छुपा-छुपी सी करते बादल
पानी से ही बादल बनते
फिर पानी ही बन जाते बादल।
कभी श्वेत कभी पीत चमकते
रजत,स्वर्ण से लगते बादल
काली घटाएँ,इंद्रधनुषी छटाएँ
कितने रंग बदलते बादल।
आकृतियों में ढलने में निपुण हैं
चित्रकार कुशल से बादल
ओले,फुहार,धारासार, न पारावार
जल विशेषज्ञ होते हैं बादल।
नीलकण्ठ,शिव करुणाकर के
परम भक्त से लगते बादल
खुद गर्मी में तपते फिरते
जगत को ठंडक देते बादल।
झूला ,मेंहदी,राखी, कान्हा,ब्रज
कितने अहसास कराते बादल
चौमासा जब विदा हो जाता
याद बहुत आते हैं बादल।
अलका सिंह

कैलाशवासी,अमरनाथ शिव - कविता

कैलाशवासी,अमरनाथ शिव 
विचर रहे हैं धरती पर
विषपायी नीलकण्ठ महादेव
विपदायें सबकी लेंगे हर
धूप दीप न फूल और फल
बस लोटे भर चढ़ जाए जल
फुहारें न मानें कोई इतवार
भीग रहा है हर एक वार
तरु ,शाखें ,पत्ते ,प्रसून
नित्य नहाते बूंदों से
व्याकुल रहते छूने को हवायें
जो जाती हैं शिव धामों को
गंगा से जल भर कर आये हैं ये बारिद
भीगी सी ऋतु में,
सूखा न रह जाये कोई आंगन
लोकोत्सव वर्षागीत और तीज त्योहार
चहुँदिशि प्रकृति कर रही शीतलता का संचार
रोली चन्दन नित शिवबन्दन
जलमय धरती,शिवमय सावन
पी गए गरल, लिए कण्ठ जलन
उस पीड़ा से नभ हुआ सजल
कहाँ भटकते फिरते हो जन
अनुभव कर 'शिव पीड़ा' देखो
जितना शिव में खोओगे
मिल जाएंगे 'स्व' में ही शिव
प्राणवायु से बहते हैं
शिवजी हर एक जीवन में
बड़भागी हैं वे घर-आंगन
जहां चहके बेटी सावन में
हिम से जल तक,कण-कण से नभ तक
वनस्पतियों जीव और विष अमृत तक
आशुतोष का है अदभुत संसार
महामृत्युंजय के चरणों में बारम्बार नमस्कार।
अलका सिंह

Saturday 3 June 2017

जून लाया मानसून (बाल कविता )

मई गई अब आया जून 
संग ले आया मानसून 
रिमझिम बरसेंगे बादल 
मथुरा हो या देहरादून 
नींबू नमक संग चटखारे 
बेंच रहे हैं भुट्टे भून 
मच्छरों से बच कर रहना 
वरना पी जायेंगे खून 

बिल्ली और कौआ पर - बाल कविताएं


           एक
बिल्ली रानी हुई सयानी
चूहे नहीं खायेगी मानी
अच्छा नहीं है मांस को खाना
देर हुई पर उसने माना
जब मैं आऊं नहीं भगाना
घर में जो हो ,दे देना खाना
दूध पियेगी ,खायेगी रोटी
रहना है स्वस्थ ,नहीं होना मोटी
कहीं मिल जाये, अगर विरयानी
थोड़ा ही खायेगी और पियेगी पानी
                   
                    दो
कौआ तेरा काला रंग
और तेरी काँव -काँव
अब तो बहुत याद है आती
तेरी कर्कश बोली, बहुत सुहाती
अपने घर के गमलों के पास
लगा कर हम बच्चों ने आस
पानी और रोटी रक्खी है
उम्मीद लगा के रक्खी है
कभी इधर भी उड़ आना
आकर रोटी खा जाना
फिर तेरी फोटो खींचेंगे
कमरे में अपनी टाँगेंगें
याद तुम्हारी आई तो
वही देख खुश हो लेंगे

जाने कैसी हवाएं चली हैं ( मानवता को पुकारती एक कविता)


जाने कैसी हवाएं चली हैं 
सारी फिजाएं बदली सी हैं 
१ -आदमी पहले ऐसा नहीं था 
मानवता थी ह्रदय में ,स्वार्थ से परे था  
कुछ  दिन से उसको भी कुछ हुआ है 
जहरीली हवाओं ने उसको छुआ है 
खोलता है जुवां आग ही उगलता है 
दुखाने को दिल, हर पल मचलता है 
दुःख और क्रोध की फ़ैल रही माहमारी 
२ -रहती न इंसान को कोई बीमारी 
मन  की बातें कोई , सुन लेता सारी  
रोगों ने इनको पकड़ के रखा है 
अंर्तद्वंद्ध ने जकड़ के रखा है 
संघर्षों में कितने अकेले पड़े हैं 
अपने  हैं तो  मगर ,पीछे खड़े हैं 
तिरस्कारों से मन हुए  हैं भारी 
३-जीने का तरीका बिल्कुल ही बदल गया 
शांति से साँस लेना मुश्किल हो गया 
ऐसे तो जीवन चल न सकेगा 
नरक की ज्वाला में जलना पड़ेगा 
रिश्तों को पुर्नजीवन देना पड़ेगा 
संभलना जरूरी है,करना पड़ेगा
वरना  ये समझो , जिंदगी हारी 
                

Monday 29 May 2017

गर्मी की छुट्टियाँ (बाल कवितायें )


                 एक
छुट्टियों में मजबूत बनो
खेलो खूब और योग करो
खीरे ,खरबूज ,तरबूज खाओ
और मैंगो शेक पियो
आइसक्रीम घर पर बनबाओ
खाओ दही और छाछ पियो
लीची खाओ ,अमरुद खाओ
नीबू पानी खूब पियो
             
                  दो
गर्मी सबसे अच्छी लगती
स्कूल की भी छुट्टी रहती
उठने की जल्दी नहीं होती
टीचर से भी डांट न पड़ती
बुआ से मिलता ,नानी घर जाता
बच्चों के संग मस्ती करता
अपने मन का राजा होता
बस अपनी ही मनमानी करता 

Sunday 26 March 2017

नकल से ब्याकुल मुकुन्दी लाल (व्यंग्य )
पिरय मकुंदी, नव सन्तावर मुबरक बो, बुसय-इंगलिस,समास सास्त्र, अपने रा प ल  सरमा को निरास मत करना। नमस्कार मित्रो ,चकरा गए न ,मेरे दिमाग का भी चूरमा बन गया है ...ऐसे पढ़े -लिखे मित्र से तो अनपढ़ मित्र होना ज्यादा अच्छा था....राम प्रसाद लखन शर्मा ,इन महोदय ने अपनी भतीजी के विषय लिख भेजे हैं ,साथ ही नवसंवत्सर की मुबारकवाद भी ,इन्हें अपनी भतीजी के लिए वर की जरूरत है।
वैसे इतना भी हैरान होने की आवश्यकता नहीं है....अगर बिहार की टॉपर विषय गलत बोल सकती है तो ये गलत क्यों नहीं लिख सकता ....शिक्षा के लिए चार बातें महत्वपूर्ण होती हैं १-किसे पढ़ाएं २-क्या पढ़ाएं  ३- कैसे पढ़ाएं ४-कौन पढाये ....मैं तो कहता हूँ इतनी माथापच्ची करने की जरूरत क्या है ,पढाने वालों का हाल ये है,कि इनके हिसाब से कारगिल पंजाब में भी हो सकता है,यूनिसेफ पोलियो ड्राप बनाने वाली कम्पनी भी हो सकती है।
प्राथमिक और माध्यमिक शिक्षा राज्य के अंर्तगत आती है केंद्र उसमें सहयोग भर कर सकता है।
विल्कुल सही राह पकड़ी थी उत्तर प्रदेश ने ,नकल करा के नाकारा पहले ही बना दो ताकि विश्वविद्यालय में जाकर सिर्फ राजनीति ही करने लायक रह जाएँ....सरकारें भी जानती रहीं कि कि काबिल बनाने का कोई फायदा नहीं है ,जनसँख्या के हिसाब से जगहें तो कम ही हैं ....इस लिए फॉर्म भरो का खेल ,खेल कर अपनी आमदनी बढ़ाती रहीं।
मैं तो कहता हूँ कापियों में किताब से नकल करबाने की जरूरत क्या है ,सीधे नम्बर डाल दो ,इतने चाहिए। इधर भी मेहनत बचेगी उधर जांचने वालों की भी मेहनत बचेगी। आजकल एक उलझन में और हूँ 'रोजगार पहले आया या पैसा 'क्यों की कोई भी क्षेत्र हो पैसे हों तो कहीं  भी घुस सकते हो,हुनरमंद होना कोई मायने नहीं रखता है।
इस वक्त मैं चचा आजम खान से बहुत नाराज हूँ,वे कहते हैं मुसलमानों के पास काम नहीं हैं....दस  जगह फोन घुमा के पता कर लो ,टेलर हो ,बार्बर हो ,प्लम्बर हो ,कारपेंटर हो ,पेंटर हो ,राजमिस्त्री हो ,फेरी वाला हो सब तो करीम या आसिफ ही होते हैं।
वेरोजगारों को देखना है तो उच्चशिक्षा प्राप्त बच्चों को कहीं भी मां -बाप की छाती पर मूंग दलते हुए देख लो ,इन निठल्लों को सिर्फ सरकारी नौकरी चाहिए उसके लिए ये गटर में भी कूद सकते हैं।
वैसे मेरे पास तो बहुत काम है ,रापल की भतीजी के लिए प्राइवेट जॉब वाला लड़का भी ढूढ़ना है क्यों कि कामचोर लोग मुझे बिल्कुल पसन्द नहीं हैं ...अगर आपकी  भी नजर में कोई हो तो बताना। आभार ,धन्यबाद।      

विश्व गुरु की राह पे चलकर ....

पृथ्वी है ये अति विचित्र
महाद्वीप और महासमंदर
नदियां, फूल,पहाड़ और झील
कितना कुछ धरती के अंदर।

कितनी खोजें, इतना काम कर
जीवन बन सकता था सुंदर
फ़ैल गया घृणा का जहर
जब-तब होते महाबबण्डर।

इतने असुरक्षित हुए हैं ऊपर
रखवाली पानी के अंदर
कैसे - कैसे महाधुरन्दर
खाली हाथ ही गया सिकन्दर।

अब तो जीना सीख लो चन्दर
योगी जी की गोद में बन्दर।
विश्व गुरु की राह पे चलकर
बन जाओ हर प्रश्न का उत्तर।

Tuesday 21 March 2017

मीडिया से त्रस्त मुकुन्दी लाल (हास्य व्यंग्य )


नमस्कार मित्रो ,मैं मुकुन्दी लाल ,होली की शुभकामनायें भी नहीं दे पाया आपको ,क्यों कि ११ तारीख से मेरा हाजमा खराब चल रहा है....अब हालत ये हो गई है कि प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया से मुँह मोड़ कर अब सोशल मीडिया पर आ गया हूँ।
ईश्वर ने अपने द्धारा बनाई प्रत्येक वस्तु की प्रकृति ,स्वभाव अलग बनाया है, फिर इसका निचोड़ इंसान में डाल दिया और इंसान ने वही निचोड़ मीडिया में डाल दिया....हद से ज्यादा कोई भी चीज घातक होती है,आजकल मीडिया का 'कमल प्रेम 'मेरे स्वास्थ्य के लिए खोखला बना रहा है क्यों कि यह मेरे लिए असहनीय हो चला है....कल तक चौबीस घण्टे गंगा -जमुनी तहजीब के पीछे लगे रहने वाले पत्रकारों का ह्रदय परिवर्तन मेरे लिए सिर-दर्द बन गया है...मुझे लगता है सेम समस्या से आजकल अभिसार शर्मा भी ग्रस्त हैं।
जिस अदालत में मेरा मतलब चैनल पर महीनों तक यादव परिवार में किसी की छींक तक पर चर्चा होती थी ,११ के बाद वहां केंद्र सरकार की कल्याण कारी योजनाओं की चर्चा होने लगी .. कल तक मोदी के बनारस भय का वर्णन होता था वहां अब अमितशाह की रणनीति की चर्चा हो रही है ... .बड़े-बुजुर्ग नहीं कह गए वल्कि गई -गुजरी सोच यह कहती है कि आज के लोग , तभी किसी की प्रसंशा करते हैं जब या तो कुछ पा चुके होते हैं या पाने की चाह रखते हैं।
इस वक्त सोशल मीडिया ही कुछ राहत रहा है..मैं दोस्तों से ज्यादा दुश्मनों का हमेशा से सम्मान करता आया हूँ फाइनली मुझे पता लग गया कि....आडवाणी की गलती मोदी थे ,मोदी की गलती योगी हैं। रिसर्च तो बनती है चौबीसों घण्टे दिमाग प्रपंच कर कैसे लेता है... विमर्श चल रहा है ,मोदी जी योगी का जितना असहयोग करेंगे फायदे में रहेंगे वरना योगी जी का हठयोग बड़ा प्रबल है कल को प्रधानमंत्री बनने की जिद भी कर सकते हैं।
कमाल का सेन्स पाया है, कल तक गठबंधन ३०० के पार जा रहा था,मोदी से बड़ा कोई जोकर नहीं था और आज योगी मोदी से बेहतर प्रधानमंत्री हो सकते हैं जब कि मुख्यमंत्री बने दो दिन हुए हैं और वो भी बर्दाश्त नहीं हो रहा तब भी...वैसे महत्वाकांक्षी होने और मूर्ख बनने में फर्क होता है.....अमितशाह की चश्में में से झांकती मिचमिचाती ऑंखें याद हैं न.....जैसे -जैसे उनकी निगाह छल -प्रपंचों पर पड़ती जाएगी प्रपंच स्वतः स्वाहा होते चले जायेंगे।
इन नवरात्रों में फलाहार पर रहने की सोच रहा हूँ ,जागरण करने और जागृत रहने की बारी तो फूल ने -फलने वालों की ही है,आम आदमी तो प्रार्थना ही कर सकता है...मां अम्बे सभी का कल्याण करें। जय माता दी।  

Friday 17 March 2017

बेटी बचाओ ,बेटी पढ़ाओ

बेटी बचाओ
दिल का टुकड़ा है
जान से ज्यादा चाहो
मत सोचिये थोड़ा
ध्यान से पढ़ लेगी
तो विवाह में आसानी रहेगी
इतना पढ़ाओ कि मजबूती से
खड़ी हो सके अपने वजूद के साथ
पांव रख सके कैसी भी जमीन पर
झूठी दिलासा मत दीजिये कि
बेटी मेरी बेटे से अधिक प्रिय है
सामना करेगी जिस दिन
इस झूठ को सह नहीं पायेगी
पिता से कहिये मत दें उसे
अतिरिक्त लाड़ -प्यार
न कहें कि ,राज करेगी मेरी बेटी
ऐसा घर लाऊंगा ढूंढ़ कर
कोई मत बहलाना
कि आयेगा सपनों का राजकुमार
मैं चाहती हूँ , इस देश की बेटियाँ
सच के साथ जियें
काम करने सीखें सारे ,घर और बाहर के
लड़ना सीखें, अभी से मुश्किलों से
क्यों कि विवाह सपनों का नहीं
उत्तरदायित्व निभाने के
पहले का उत्सव है
माता -पिता की छाँव से दूर
झंझावतों से जूझने के पहले का उत्सव है
मत जीने देना उसे
भ्रमित और फरेब में
डालने वाली जिंदगी
उसमें हिम्मत जगाओ
मुश्किलों से भिड़ना सिखाओ
ऐसा बनाओ कि कभी टूटे नहीं
टूट भी जाये तो बिखरे नहीं
उसे तपाओ कि सोना बन कर निखरे
क्यों कि बाकी जिन्दगी
आपके बिना जीनी है उसे
आपके अहसास के साथ
यही अंतिम सच है
हर बेटी का।

Wednesday 15 February 2017

मुकुन्दी लाल बोलता है (मुस्कराना मना है )


'जिधर दिखेगी सूंड उधर बनेगा मूड '
मुकुन्दी -क्यों भइया, घऱ का  खर्चा क्या पड़ोसी चलाएंगे,अगर इतना ही क्रेज है सूंड का तो भगवान गणेश का लॉकेट पहन कर घर से क्यों नहीं निकलते। फिर तो दिन भर ही मूड बना रहेगा।
'जन- जन की है यही पुकार ,हैडपम्प की आई बहार '
मुकुन्दी -झूठ बोलते शर्म नहीं आती ,हैडपम्प लगवाकर अब क्या करोगे भाई ,पानी का स्तर तो बहुत नीचे जा चुका है.....'जल ही जीवन है' इस बात का ख्याल पहले ही रखा गया होता तो यह नौबत ही नहीं आती....अगर अब भी न सुधरे तो पानी के लिए  सच में कंगाल हो जाओगे।
'साइकिल और हाथ का साथ पसन्द है '
मुकुन्दी -लगता है बड़ी हड़बड़ी में हैं भाई ,देर से आये फिर भी सवालों के जवाब ढंग से ढूंढ कर नहीं ला पाए ,ऐसे उचकम -उचका करते हो कि पूछने वाले सोचते हैं भाई लोग उनको सीरियसली नहीं लेते ..आपका बर्ताव उनको ऐसा लगता है जैसे आपने उनको खरीद लिया हो। आजकल हाथ की जगह मशीनों ने ले ली है और जो हाथ काम में लगे भी हैं लोग उनको भाव नहीं देते, पप्पू कह कर निकल जाते हैं.......हाँ साइकिल स्वास्थ्य के लिए लाभदायक हो सकती थी ऐसा माना जाता है लेकिन इससे भी लोगों ने नजरें फेर ली हैं ...क्यों कि आदमी डाइविटीज से राहत के लिए साइकिल खरीदता है  पर हर जगह जान को खतरा है चल नहीं सकता और चोरों की भी नजर जमी रहती है इसलिए ...साइकिलिंग छोड़ कर लोगों ने काम पर ध्यान देना शुरू कर दिया है क्यों कि शरीर बोलता है मोटापा कोसों दूर रहता है।
'एक ही अरमान तीर कमान'
मुकुन्दी -उद्धव काफी समझदार व्यक्ति थे मगर व्रज वासियों ने उनकी बातों को गम्भीरता से नहीं लिया उन्होंने भगवान कृष्ण को भूलने की बात की थी सबने दुत्कार के भगा दिया था...भक्ति होती ही ऐसी है.गोपियों ने कहा था -ऊधौ मन नहीं दस बीस।खैर ये सब जाने दो...राजशाही तो जा चुकी ,क्रिकेट के जमाने में तीर कमान का अरमान, ये बात कुछ हजम नहीं हुई।
'परिवर्तन लाएंगे फूल खिलाएंगे '
मुकुन्दी -अरे भइया , परिवर्तन लाने का ठेका तुमने लिया है क्या ,परिवर्तन तो प्रकृति का शाश्वत नियम है ,पतझड़ ,सावन ,बसन्त ,बहार...कोई चाहे न चाहे वारिश भी होगी ,बर्फ भी पड़ेगी और फूल भी खिलेंगे। इंसान के वश में क्या है ,कभी शशिकला ने घर वार ठुकरा दिया था और आज वक्त ने उनको जबरदस्त ठोकर मार दी....ये संसार ऐसे ही चलता है जो आज है वो कल नहीं रहेगा।
क्या भाई साहब आप तो गम्भीर मुद्रा में आ गये,पसन्द अपनी -अपनी ख्याल अपना -अपना।किसी को नदी पसन्द है किसी को नाव पसन्द है,किसी को धूप पसन्द है किसी को छांव पसन्द है, कोई मन्त्र मुग्ध है किसी को तलाश पसन्द है....और बगल वाले दददू को 'विकास' पसन्द है क्यों कि वो उनके पोते का नाम है....आज के लिए इतना ही अपने बोल अनमोल सुनाने फिर आऊँगा तब तक के लिए नमस्कार।



            

Tuesday 14 February 2017

जीवन में भयानक रस (डर ) का महत्व- (व्यंग )



इन औरतों के कुछ गुण सच्ची में कुत्तों से मिलते हैं ,देखो न इतने सँभल कर आहिस्ता -आहिस्ता उठ कर पंखे में डंडा मारा, तब भी नींद में भी पत्नी जासूसी कर रही थी  -ठंड में पंखा क्यों चला रहे हो.....इसी डर से पहले पानी की बोतल हिलाई थी लेकिन उसका पानी ऐसे उछल रहा था जैसे समंदर में सुनामी उठ रहा हो। बताता भी तो क्या बताता इनको सिवाय सोलह सिंगार  के कुछ पता भी होता है ,अगर कह भी देता कि "भयानक रस"पर काम कर रहा हूँ तो समझ में आता क्या ?चन्द मिनट पहले भूकम्प आया था ,वीडियो बना रहा था, बीच में टोंक दिया।
डर फ़ैलाने में ,मैं बचपन से शौक़ीन रहा हूँ , कभी रात को साबुत उड़द ,काले तिल ,रोली और कटे नीबू लोगों के दरबाजों पर फेंक देता था तो कभी छतों पर जाकर बच्चों के कपड़ों में कट मार आता था ....उसके बाद मुहल्ले में  जो हाहाकार मचता था ,मजा आ जाता था।
हिंदी साहित्य में नौ रस माने गए हैं ,इन सभी रसों की जीवन में अलग -अलग आवश्यकता और महत्व है..... वॉलीवुड के प्रिय रसों में श्रंगार रस ,वीर रस ,और वीभत्स रस रहें हैं ....पहले की फिल्मों में वात्सल्य रस और भक्ति रस का फिल्मांकन भी देखने को मिल जाता था......पर प्रथम स्थान पर आज भी श्रंगार रस  (प्रेम )वीभत्स रस  (घृणा ) और भयानक रस  (डर )ही बने हुए हैं,यही हाल डेली सोप का भी है।
अगर राजनीति की बात करें तो यहां भी भयानक रस और वीभत्स रस ही बाजी मार ले जाते हैं वैसे भयानक रस तो सभी का प्रिय रस है चाहे वह पुलिस हो ढोंगी बाबा हों ज्योतिषाचार्य हों गुरुमहाराज हों या तांत्रिक।
कमाल का सॉल्यूशन है बेरोजगारी दूर करने का ,प्रतिदिन फलां मन्त्र का ११००० वार जप करें,सारा समय जप में ही चला जायेगा नौकरी का ख्याल खुद व् खुद ही नहीं आएगा ,जल्दी शादी के लिए फलां चीजें रख के रात के सन्नाटे में सुनसान जगह पर रख आएं और पलट कर न देखें ,वर्तमान में इंसान वैसे ही इतना निडर होता है ऐसे उपाय करेगा तो सीधे श्मशान में ही नजर आएगा,शादी की जरूरत ही नहीं पड़ेगी।
धन्यवाद देना चाहता हूँ टीवी वालों को , हम जैसों के हाथ डर फ़ैलाने के बैठे -बिठाये अचूक उपाय दे रखे हैं ....
क्राइम पैट्रोल ,सावधान इण्डिया ,सनसनी देखो और पत्नी ,बच्चों को डराओ।शादी के बाद नौकरी छुड़वाने का ताना सुन के तंग आ गया था अब वो भी दफन हो चुका है.....दो -चार एपिसोड भी मिस कर दो तो बच्चे सीधे घर के बाहर और पत्नी टी वी या मोबाइल पर चिपकी नजर आती है ,फिर देखना शुरू कर दो ,सब सेंटर में आ जाते हैं.....भयानक रस की महिमा अपरम्पार है कुछ लोग दुनिया को डरा के मस्त हैं ,कुछ डर से त्रस्त हैं ,कुछ डर से बचाव करने में व्यस्त हैं।    


Tuesday 7 February 2017

चुनावी मौसम में रिरियाता बसन्त (व्यंग )



चुनावी मौसम हर मौसम पर भारी होता है, अभी ही देख लो उमंगें तो चुनावी मौसम की जवां हैं बसन्ती मौसम तो रिरिया रहा है ... इस बार तो कमाल हो गया है ऐसे लोग ज्यादा बौराये हुए हैं जिनका राजनीति से दूर -दूर का लेना -देना नहीं है।इस हुड़दंगी मौसम में किसी का मरना और अपनों का बीमार होना बहुत अखर रहा है। सियासी महाभारत घरों में भी दाखिल हो चुकी है....कुछ रोज पहले कान्हाश्री अपार्टमेंट में रात को पुलिस आई थी......
क्या कहा जाये ,इन औरतों ने तो आदमियों की जिंदगी नरक बना रखी है ,तुलसीदास जैसा महाकवि तक इन औरतों की औकात बड़े अच्छे से बता गया।
इस लहलहाते चुनावी मौसम में करोड़पति प्रत्याशियों के धन रूपी समंदर से कुछ रंगीन छींटे इनके पतियों पर भी पड़ रहें हैं तो इनसे बर्दाश्त नहीं हो रहा.....बेचारे पति पार्टियों को वोट दिलाने का जतन कर रहे हैं और बदले में इन्द्रनगरी जैसे थोड़े से सुख उठा रहे हैं और  इधर पत्नियों को पतियों के खिलाफ खलनायिका बनने की सूझ रही है.....तभी तो मिसेज शर्मा अपना सिर फुडा बैठीं हैं आंखों से भी कम दिखाई देने लगा है ....मिसेज सक्सेना की हरकतों के चलते ही मिस्टर सक्सेना अपने जिगर के टुकड़े को फर्श पर पटक बैठे।और उस दिन पुलिस इस लिए आई थी क्यों कि परेशान हो पड़ोसियों ने बुलाई थी ....मिस्टर वर्मा ने मिसेज वर्मा को लात -घूंसे जड़ के घर के बाहर धकया दिया था.....इन औरतों को महीने भर की तसल्ली नहीं है। ११ फरवरी को मिस्टर वर्मा सूबे के उज्ज्वल भविष्य के लिए काम कर रहे होंगे और उधर मिसेज वर्मा मायके में बैठी अपनी बेटी का भविष्य बर्बाद कर रही होंगी क्यों कि ११ फरवरी से उसके एनुअल एग्जाम शुरू हैं।
वैसे सारी औरतें एक जैसी नहीं होती है बहुत  सी औरतें इस चुनावी समर में अमूल्य योगदान  भी दे रहीं हैं उन्हें देख कर ही अहसास होता है कि बसन्त आ चुका है। कूपमण्डूक औरतों को तो बस "बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ" यही नारा याद है बाकी दुनियादारी की ए बी सी भी नहीं पता.....अरे बंदरियों और क्या सरकार यह कहेगी "लड़की बचाओ"जानने वाले सब जानते हैं पॉलिटिकल पार्टीज हों या बाकी समाज बेटी किसी को नहीं चाहिए लड़कियां सबको पसन्द हैं।
हर घर,समाज में कुछ लोग धरती पर बोझ होते ही हैं ऐसे ही हैं रिटायर्ड मेबालाल और कुछ सिरफिरी बीबियाँ जो पार्क में बैठ कर डर्टी राजनीति पर डिस्कस और चिंतन करते रहते हैं ....कहते हैं एक दिन ऐसा आएगा कि चुनाव के दौरान हर घर इन्द्रनगरी बन जायेगा....कमबख़्तों ने खुद की जिंदगी तो जहन्नुम बना ही रखी है और इस फगुआए मौसम में दूसरों की जिंदगी में भी जहर घोलने में लगे हुए हैं।भगवान इन चिंताधारी जीवों को सद्बुद्धि दो ,ऐसे मौसम बार -बार आते रहें ,जय लोकतंत्र की ,जय आसुरी राजनीति की।  

Saturday 4 February 2017

महज़ फ़रेबी लगे फिर से ये सिलसिले

                                     
                हमारे कष्टों से जिनको खुशियाँ मिलीं
                गुत्थियाँ मन की जिनके संग खुलती नहीं
                जिनसे हरगिज हमारी बनती नहीं
                फिर कभी मिलने की न चाहत लिए
                जिनसे मिले हुए, अब तो बरसों हुए
                तो कल ही हमको फॉलो किये
                वो टहलते हुए वर्चुअल वर्ल्ड में मिले

                हमारे सपनों से जो जलते रहे
                देख कर आदतन ही उबलते रहे
                न निकल जाऊं आगे डरते रहे
                आस्तीन में रह कर भी डसते रहे
                गिनती सीखी हमारी कमियों से ही उन्होंने
                तंज कसने से अब जाकर फुर्सत मिली
                पोस्ट हमारी को लाइक करते मिले

                जिधर देखो उबासियां फैलीं पड़ीं
                सुनकर औरों के दुःख जो बहरे हुए
                सफलताऐं दिखीं तो गूंगे हुए
                यहाँ उपस्थिति उनकी जरूरी भी नहीं
                आत्मीयता दिखाते ,खिलखिलाते मिले
                अपनेपन से जिनका कुछ नाता नहीं
                महज़ फ़रेबी लगे फिर से ये सिलसिले
               

Wednesday 1 February 2017

धूप कब तक छत पर बुलाती रही

कोहरे में लिपटी ,ठिठुरी सर्द सुबहें
ठंडक तन को जकड़े ,अकड़ी सीं नसें
कुछ अब तक लिहाफों में सिमटे रहे
चाय की चुस्कियों में डूबे रहे
टी वी की खबरों में अटके रहे
जिंदगी से जैसे भटके रहे
निपटे सारे काम घिसटते ,सिमटते
जमां दी सर्दी ने सारी हसरतें
सुन्न ख्याल ,फिर भी बेचैनियां सी रहीं

कानों ने तो बिल्कुल सुना ही नहीं
धूप कब तक छत पर बुलाती रही

दिन छोटे हैं ,रातें बड़ी रहीं
नींद फिर भी ,जानें क्यों अधूरी रही
कभी सवाल कभी तनाव रही
जिंदगी हमेशा वदहवास रही
गॉसिप में बीते कुछ पल
कुछ पालक ,बथुआ साफ करने में
कभी उँगलियाँ थिरकतीं रहीं सलाइयों संग
मूंगफली ,गज़क का स्वाद लेती रही जीभ
अलसाती रही ,दोपहर रह-रह कर

गया ही नहीं ध्यान बिल्कुल उधर ,जिधर
मखमली धूप दे थपकी सुलाती रही

आना -जाना , हंसना- हंसाना
सुनना -सुनाना दर्द बाँट ले जाना
तेरा होना ,मेरा होना, सम्बल था
बचपन में ढकता जैसे सबको कम्बल था
व्हाट्सप ,फेसबुक पर उड़लती भावनाऐं
वैसे तो सम्वेदनाएँ अपँग हो गयीं
गहरी हो गयीं स्वार्थों की खाइयां
आसमा छू रहे अहंकारों के पहाड़ 
मिटा दो ,ढहा दो छिटको न अपनों को अपने से
समझाती रही ,बुदबुदाती रही

पछुआ हवाऐं दे रहीं थीं थपेड़े
धूप फिर भी अड़ी गुनगुनाती रही