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Tuesday, 7 February 2017

चुनावी मौसम में रिरियाता बसन्त (व्यंग )



चुनावी मौसम हर मौसम पर भारी होता है, अभी ही देख लो उमंगें तो चुनावी मौसम की जवां हैं बसन्ती मौसम तो रिरिया रहा है ... इस बार तो कमाल हो गया है ऐसे लोग ज्यादा बौराये हुए हैं जिनका राजनीति से दूर -दूर का लेना -देना नहीं है।इस हुड़दंगी मौसम में किसी का मरना और अपनों का बीमार होना बहुत अखर रहा है। सियासी महाभारत घरों में भी दाखिल हो चुकी है....कुछ रोज पहले कान्हाश्री अपार्टमेंट में रात को पुलिस आई थी......
क्या कहा जाये ,इन औरतों ने तो आदमियों की जिंदगी नरक बना रखी है ,तुलसीदास जैसा महाकवि तक इन औरतों की औकात बड़े अच्छे से बता गया।
इस लहलहाते चुनावी मौसम में करोड़पति प्रत्याशियों के धन रूपी समंदर से कुछ रंगीन छींटे इनके पतियों पर भी पड़ रहें हैं तो इनसे बर्दाश्त नहीं हो रहा.....बेचारे पति पार्टियों को वोट दिलाने का जतन कर रहे हैं और बदले में इन्द्रनगरी जैसे थोड़े से सुख उठा रहे हैं और  इधर पत्नियों को पतियों के खिलाफ खलनायिका बनने की सूझ रही है.....तभी तो मिसेज शर्मा अपना सिर फुडा बैठीं हैं आंखों से भी कम दिखाई देने लगा है ....मिसेज सक्सेना की हरकतों के चलते ही मिस्टर सक्सेना अपने जिगर के टुकड़े को फर्श पर पटक बैठे।और उस दिन पुलिस इस लिए आई थी क्यों कि परेशान हो पड़ोसियों ने बुलाई थी ....मिस्टर वर्मा ने मिसेज वर्मा को लात -घूंसे जड़ के घर के बाहर धकया दिया था.....इन औरतों को महीने भर की तसल्ली नहीं है। ११ फरवरी को मिस्टर वर्मा सूबे के उज्ज्वल भविष्य के लिए काम कर रहे होंगे और उधर मिसेज वर्मा मायके में बैठी अपनी बेटी का भविष्य बर्बाद कर रही होंगी क्यों कि ११ फरवरी से उसके एनुअल एग्जाम शुरू हैं।
वैसे सारी औरतें एक जैसी नहीं होती है बहुत  सी औरतें इस चुनावी समर में अमूल्य योगदान  भी दे रहीं हैं उन्हें देख कर ही अहसास होता है कि बसन्त आ चुका है। कूपमण्डूक औरतों को तो बस "बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ" यही नारा याद है बाकी दुनियादारी की ए बी सी भी नहीं पता.....अरे बंदरियों और क्या सरकार यह कहेगी "लड़की बचाओ"जानने वाले सब जानते हैं पॉलिटिकल पार्टीज हों या बाकी समाज बेटी किसी को नहीं चाहिए लड़कियां सबको पसन्द हैं।
हर घर,समाज में कुछ लोग धरती पर बोझ होते ही हैं ऐसे ही हैं रिटायर्ड मेबालाल और कुछ सिरफिरी बीबियाँ जो पार्क में बैठ कर डर्टी राजनीति पर डिस्कस और चिंतन करते रहते हैं ....कहते हैं एक दिन ऐसा आएगा कि चुनाव के दौरान हर घर इन्द्रनगरी बन जायेगा....कमबख़्तों ने खुद की जिंदगी तो जहन्नुम बना ही रखी है और इस फगुआए मौसम में दूसरों की जिंदगी में भी जहर घोलने में लगे हुए हैं।भगवान इन चिंताधारी जीवों को सद्बुद्धि दो ,ऐसे मौसम बार -बार आते रहें ,जय लोकतंत्र की ,जय आसुरी राजनीति की।  

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