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Sunday 13 November 2016

लालन मेरा किधर गया

गोल, बड़े -बड़े नयनों वाला 
घने, स्याह गेसुओं वाला 
आकर्षक मुखमण्डल वाला 
हौले से मुस्काने वाला 
प्रफुल्लित कर जाते बोल 
लालन मेरा किधर गया 

नहला कर अभी बिठाया था                          
तौलिया ही सिर्फ लपेटा था 
दूध देखने गई रसोई 
आकर होश उड़े थे मेरे 
लालन मेरा किधर गया 

क्या बतलाऊँ ,कितना डर गई 
साँसे जैसे धक से थम गईं 
ऊपर- नीचे ,ओने -कोने 
सब घर में पैर पड़े थे मेरे 
बाथरूम में देखा जाकर 
तो आल्हादित होना था 
बाथटब में बैठा लालन 
पानी से छप -छप खेल रहा 
वयां नहीं कर सकती वो पल
ममता का समंदर डोल  गया  
मन ऐसे मेरा हिलोर गया 

मींठी नींद की गोद में विल्कुल 
बेटा ऐसे खोया था 
परीलोक में परियों के संग 
सुंदर सपनों में खोया था 
काम -काज निपटा लूँ जल्दी 
  मैं इस धुन में खोई थी 
धुन में जाकर पड़ी खलल 
तो बड़ी रुआँसी होई थी  
सोते से अब हुआ है गायब 
लालन मेरा किधर गया 

घबरा कर फिर से मैंने  
सारा घर खंगलाया था
जाकर वहाँ देखा मैंने 
फिर तो अचम्भित होना था 
अलकें विखराये चेहरे पर  
निंदिया के आग़ोश में रह कर 
दो नन्हीं सी कारें लेकर 
बॉथटब में लेट गया 
ऐसा अप्रितम दृश्य देख कर 
ममता का समंदर डोल गया 
मन ऐसे मेरा हिलोर गया 
 

हर शख़्स अलग किरदार है

हौंसला दिलाना ,विश्वास जगाना ,साथ निभाना
अपनापन #,प्यार ,दुलार ,फटकार ,पुरस्कार
इन्हीं घरों की बातें थीं
लहू की जगह अब तेजाब ने ले ली है
बदन जल रहे हैं ,आतुर हैं औरों को भी जलाने को
नश्तर उग आए हैं जुबान पर
जो लगे हैं घाव पर घाव करने में
अपनों में भी ढूढ़ो तो
हर शख़्स अलग किरदार है

कभी सबका हितैषी वो 'ऊपरवाला' ही था
उल्टी लहरों में बस 'एक ही सहारा' था
सच्ची प्रार्थनाएँ दम तोड़ रहीं हैं
खो गई है पतवार ,सोया हुआ है खेवनहार
तड़प रही है आत्मा ,मचा है मन में कोहराम
भटकाव की कोई मंजिल नहीं होती
हताशा और निराशा में डूबी भीड़ को
ढोंगियों ने दे दी है शरण
ये आस्था की पराजय है ,खुद
#ईश्वर की हार है

दोस्ती की बातें, दर्ज़ किताबों के हर्फ़ हैं
किस्से -कहानियाँ  कुछ निशानियाँ हैं अतीत की
सच्चा दोस्त #विलुप्त प्राय प्राणी या
नई जीन्स में लगे 'पेंवद' जैसा है
नए ट्रेंड में दोस्ती एक फैशन है , पैशन है
पार्टियों ,त्योहारों के गिफ़्ट से रौशन है
स्वर्णिम दिनों के आकाश के सितारे
बदहाली के आलम में जुगनू तक नहीं रहते
दोस्ती दो लोगों का साथ नहीं
स्वार्थ की जुवां में एक -दुसरे से 'कुछ हथियाने का चलन है
सदभावों ,शुभचिंतन का कत्ल है ये ,#मानवता को धिक्कार है 

Saturday 12 November 2016

स्वच्छता अभियान पर निबन्ध (व्यंग्य )


 मैडम जी ,सफाई की बातें टी वी  पर रेस्पेक्टेड पीएम जी से और घर में मम्मी से सुनी हैं ,पर मम्मी सफाई को लेकर सबकी डांट खाती रहतीं हैं ,इस लिए मुझे बुरा भी बहुत लगता है। मम्मी जब भी पापा से बाथरूम में वाइप करने को कहती हैं ,तो पापा कहते हैं -तुम टॉयलेट भी अपनी टंग से साफ किया करो। ....... चाचा कहते हैं -टॉयलेट कोई गन्दी प्लेस थोड़े ही है ..... जब वे हॉस्टल में रहते थे तो वहाँ के लड़के एक -दूसरे की चीजें चुरा कर
टॉयलेट में ही खाते थे ....... भइया मॉर्निग में जब किचन में जाता है तो मम्मी उस पर डेली चिल्लाती हैं ,कहती हैं-इस घर की ये तो परम्परा है कि छोटे से लेकर बड़े टॉयलेट से निकल कर कभी पैर नहीं धोते ,बाहर की चप्पलों के साथ सारे घर में घूम आते हैं ,पूजाघर तक नहीं छोड़ते। फिर दादी, मम्मी को डांटती हैं -कितना चिल्लाती है ये महान महिला .... .. सवेरे -सवेरे शनिदेव को दरवाजे खोलती है।
मम्मी कहती है -सबकी सेवा करते -करते एक दिन दुनिया से चली जाउंगी .... ये लोग नहीं सुधरेंगे ,बीमारियाँ कहाँ तक न फैले ,मोदी जी भी कैसे लोगों को समझाने चलें हैं। ...... दादी फिर चिल्लाती हैं -ओ मोदी की चेली .. उनका सिंहासन सरक जायेगा पर बजबजाती गन्दगी की तस्वीर न बदल पाएंगे। ........ अरे सत्यानाश हो बावले मोदी का घर की औरतें कम पंडताइन थीं ऊपर से और बवाल फैला दिया। कोई और काम -धाम न बचा है इस देस में। ........ क्या आदमी है ,अच्छों -अच्छों को झाड़ू पकड़ा दी इसने।
अरे जहां चार जन खड़े हो जाएँ वहां टिकने की है सफाई ?दादा जी अलग परेशान हैं ,कहते हैं -सर्वे में परसेंटेज देखी थी ,चश्मा लगा के देखना चाहिए.......पता है बुढ़ापे में खिल्ली उड़वा दी मोदी ने। शर्मा जी बीच रस्ते किनारे क्या खड़े हुए नई उमरों ने फूल पकड़ा दिए। ...... वाकिंग करते वक्त कहीं थूक भी नहीं सकता ,रुमाल रखने पड़ते हैं साथ में।
मैडम जी मैं कनफ्यूज्ड  हूँ ,सफाई गुड हैविट है या वैड। आई डोंट नो।