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Thursday, 31 August 2017

कैलाशवासी,अमरनाथ शिव - कविता

कैलाशवासी,अमरनाथ शिव 
विचर रहे हैं धरती पर
विषपायी नीलकण्ठ महादेव
विपदायें सबकी लेंगे हर
धूप दीप न फूल और फल
बस लोटे भर चढ़ जाए जल
फुहारें न मानें कोई इतवार
भीग रहा है हर एक वार
तरु ,शाखें ,पत्ते ,प्रसून
नित्य नहाते बूंदों से
व्याकुल रहते छूने को हवायें
जो जाती हैं शिव धामों को
गंगा से जल भर कर आये हैं ये बारिद
भीगी सी ऋतु में,
सूखा न रह जाये कोई आंगन
लोकोत्सव वर्षागीत और तीज त्योहार
चहुँदिशि प्रकृति कर रही शीतलता का संचार
रोली चन्दन नित शिवबन्दन
जलमय धरती,शिवमय सावन
पी गए गरल, लिए कण्ठ जलन
उस पीड़ा से नभ हुआ सजल
कहाँ भटकते फिरते हो जन
अनुभव कर 'शिव पीड़ा' देखो
जितना शिव में खोओगे
मिल जाएंगे 'स्व' में ही शिव
प्राणवायु से बहते हैं
शिवजी हर एक जीवन में
बड़भागी हैं वे घर-आंगन
जहां चहके बेटी सावन में
हिम से जल तक,कण-कण से नभ तक
वनस्पतियों जीव और विष अमृत तक
आशुतोष का है अदभुत संसार
महामृत्युंजय के चरणों में बारम्बार नमस्कार।
अलका सिंह

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