भारत और पाकिस्तान के बीच सीरीज होने को लेकर विवाद है | भारत सरकार Patriotism को बीच में ले आई है | पाकिस्तान वाले चिल्ला-चिल्ला
कर कहने लगे है कि - ये गलत बात है, सही बात भी है जिनके पेट पर लात पड़ रही हो,
फायदा दर फायदा पर क्रॉस लग रहा हो तो चिल्लाना तो बनता है अब देखो न सीरीज होने
के कितने फायदे है... दोनों क्रिकेट बोर्डों को मुनाफा होता है, खिलाडयों को
मुनाफा होता है... दोनों तरफ की मीडिया को भी कुछ दिन के लिए मसाला मिल जाता है |
और यही वो बक्त होता है जब हिदुस्तान की मीडिया में पाकिस्तान के मौजूदा खिलाडियों
के साथ पूर्व खिलाडियों को भी चमकने का मोका मिल जाता है पाकिस्तान के कुछ
खिलाडियों जैसे इमरान खान, वकार युनुस, वसीम अकरम, शुएव अख्तर ये वे खिलाड़ी है
जिन्हें भारत से वेंतहा नफरत रही है इन्होने भारतीय खिलाडियों को खूब सताया है |
लेकिन देखिये जब इनके सत्कार में भारतीय मीडिया बिछ जाता है तो इनके
चेहरे पर भी मुस्कान आ ही जाती है | और आये भी क्यों नहीं रिटायरमेंट के बाद
हिंदुस्तान ही वह जगह है जहाँ न सिर्फ
इन्हें पूंछा जाता है बल्कि छाने का मोंका भी मिला जाता है | बॉलीवुड की एक्टर्स
का भी कनेक्शन रहा है पाकिस्तानी क्रिकेटरों के साथ... तो ऐसे में वे क्यों न
चाहेंगे की हिंदुस्तान उन्हें बुलाता रहे, गले लगाता रहे, अपने सीने के जख्म
भुलाता रहे | भले ही अपने स्वार्थ के चलते जब इमरान खान, वसीमअकरम और रावल पिंडी
एक्सप्रेस मुंह से शहद टपकाते हैं तो दिल को बड़ा सकून मिलता है | क्योंकि उनके
अंदर की तड़प को उस बक्त भारतवासी महसूस कर रहे होते है | कि वे कहना तो कुछ और चाह
रहे होते है मगर कह कुछ और रहे होते है | हिन्दुस्तानियों को मूर्ख कहा जाये या
महामानव, कि पाकिस्तानी एक्टर्स, क्रिकेटर्स, सिंगर्स, शायर, ग़ज़ल गायक, बीमार,
शिल्पकार और भी कई जन यहाँ से फायदा उठा रहे है.....कमाल है फिर भी कुछ
हिन्दुस्तानी बुद्जीवियों को लगता है कि ये देश असिहष्णु है |
वैसे पाकिस्तानी बद्द्जीवी भी कम नहीं है, अपने बजीर-ए-आज़म और हमारे प्रधानमंत्री
की लिप रीडिंग ऐसे कर रहे थे जैसे - हमारे यहाँ महिलाएं ग्रुप में बैठकर एक दूसरे
की पड़ोसी के बारे में बात करती है | जब कोई पूछती है - तुमने अपने कानों से सुना
था तो कहती है - नही सुना तो नही था लेकिन उनके हाव-भाव देख कर ऐसा ही लग रहा था
की १००% हमारी ही बुराई कर रही थी... सुषमा जी पाकिस्तान गयीं तो पाकिस्तानी टीवी चेनलों
पर जो उथल पुथल मची हुई थी ऐसा लग रहा था - कि उनमें और हममें बहुत समानता है जैसे-
हमारे यहाँ बेटा पचास गुनाह कर ले फिर भी उसकी एक भी गलती हमें नज़र नहीं आती या
फिर जानबूज कर कभी मानते ही नही है | लेकिन बेचारी बहु में हज़ार नुक्स निकाल लेते
है | बहू को उदाहरण भी देते है मिनट-मिनट पर कि एक सावित्री थी एक तुम हो, सुधर
जाओ... बरना बहुत पछताओगी | ऐसा ही कुछ पाकिस्तान कर रहा है | उधर हमारी चची जान
और सहेलियां बड़ी बेसव्री से इंतज़ार कर रही है कि हम नानी कब बनेंगे जाने सानिया
मिर्ज़ा कब खुशखबरी देगीं जब उनसे कहा गया ज्यादा दीवानी ना बनों पहला हक़ तो
खुशियाँ मनाने का दादियों का होगा ना कि नानियों का | लेकिन चचीजान बोलीं- बच्चा
हमेशा नाना नानीं को प्यार ज्यादा करता है लेकिन जनाब चिराग तो दादा दादी के ही घर
का होता है | है की नही ? लेकिन क्या फर्क पड़ता है हम दिलवाले जो ठहरे !!!
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