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Thursday, 12 March 2015

शिक्षा और जागरूकता....

आमतौर पर जागरूकता का सम्बन्ध शिक्षित या अशिक्षित होने से लगाया जाता है पर मेरा अनुभव कहता है शिक्षित होने से जागरूकता का कोई सम्बन्ध नहीं है. क्यों कि एक शिक्षित गृहणी को कोई ये पता होता है साफ सफाई क्यों जरूरी है फिर भी नही करती, लेकिन एक अनपढ़ गृहणी घर की साफ सफाई को जरुरी समझती है इसलिए नही की कोई बड़ा कारण है बस उसे अच्छा लगता है, उसे लगता है घर को घर जैसा ही लगना चाहिए कबाड़खाना नहीं।
 एक होम साइंस की टॉपर फल सब्जी धोकर नही काटती और जब काटकर धोती भी है तो बस उसे धोना नही पानी डालना कहते है जब कि उसे सब कुछ पता है लेकिन एक अनपढ़ गृहणी कहती है साग या मूली काटकर धोने से सही से धुल नही पाती मिट्टी रह जाती है जब की वो ये नही जानती है की पौष्टिक तत्त्व नष्ट होते है पर काम वो सही तरीके से करती है।
शिक्षित होने का अर्थ होता है व्यक्तिव का विकास जिसमें व्यक्ति निरर्थक सोच से सार्थक सोच की तरफ बढ़ता है लघुता से श्रेष्ठता की ओर बढ़ता है, पाशविक प्रवृति से मनुष्यता की ओर बढ़ता है लेकिन यहाँ तो उल्टा हो रहा है रैगिंग के नाम पर जो अमानबियता हो रही है वे पढ़े लिखे जाहिल ही तो करते है बही आगे चलकर इंजीनियर, मैनेजर, डॉक्टर,अधिकारी बनते है ये वे छात्र होते है. जो पढाई के साथ साथ गर्ल फ्रेंड को भी मैनेज करते  है और बात प्यार से स्टार्ट करके सारी हदें पार कर जाते है इनके लिए फीलिंग्स का मतलब सिर्फ मजाक उड़ाना होता है।
कहते है पढ़े लिखे आदमी के बिहेवियर में बिनम्रता आती है वह अपनी सफलता से घमंड में चूर नहीं होता मगर ऐसा ही होता है अक्सर सफल वियक्ति सामने वाले को उसके छोटेपन का अहसास कराने में पीछे नही रहता ज्यादातर पढ़े लिखे लोग ही रोड के रूल्स को फॉलो नहीं करते और अपनी गलतियों से दूसरे की जान पर बन आने देते हैं कभी- कभी बात गाली गलौज और मार पीट पर भी उतर आती है ये कहीं न कहीं रोज़ का नज़ारा होता है इनको ऐसा लगता है की हर कंडीशन का सामना सिर्फ मारपीट से ही हो सकता है पढ़े लिखे लोग ही औरतों की इज़्ज़त नहीं करते लड़कियां भी पता नहीं किस दौर में जीतीं है जो जाल उनके लिए बुना गया है उसमें फस कर खुश होतीं हैं और कुतर्कों से खुद को समझदार मानने की गलती करती है जैसे वह लड़की हैं तो किसी को भी अपनी तरफ अट्रैक्ट करके अपना काम निकलवा सकतीं है.

लेकिन इसके लिए उन्हें भारी कीमत चुकानी पड़ती है जिसका उन्हें रत्ती भर भी का मलाल नहीं होता वो कहती हैं हम ऐसा कर सकते थे गॉड ने हमें ऐसा ही बनाया है तो हमने किया इसमें बुराई क्या है? एक पढ़ा लिखा जागरूक इंसान ऐसा होता है क्या ? इसी लिए मुझे लगता है कि ढोल पीटना बंद करना चाहिए की शिक्षा के अभाव की बजह से जागरूकता की कमी है आज घर घर में हरेक चरित्र में पॉलिटिक्स समां गयी है हर आदमी नफा नुक्सान तोल कर बात करता है वह जागरूकता की परिभाषा अपनी तरह से ही करता है और आगे बढ़ता है जो की बहुत ही नुकसानदायक है इस सोच से उभरना बहुत ही जरुरी है बरना सारी इंसानियत ही सड़ाँध मारने लगेगी।

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