नाकामियों का इतिहास रही
जिंदगी बस प्यास रही
ठोकर दर ठोकर ही देखी
ढंग का कुछ भी मिला नही
कुछ तो सही किया ही होगा
कुछ भी हासिल हुआ नही
रो- रो कर घुटती मरती सी
बेमतलब बकबास रही
उदासियों की किताब रही
जिंदगी बस प्यास रही
बिखरा - बिखरा उल्टा पलटा
जीवन सारा लगता है
जीवन से कोई मोह नही
अच्छा जाना, इस जग से लगता है
मर भी नहीं सकते हम तो
इतने हम मजबूर हुए
कितने पूजा पाठ किये पर
ईश्वर भी हमसे दूर हुए
हर पल फन्दा सी लगती है
एक ऐसा जंजाल हुई
सूनेपन की खान रही
जिंदगी बस प्यास रही.
मन उलझा अनसुलझे प्रश्नों में
हल कहीं नज़र नहीं आता है
जिसको भी समझो अपना
वो ही दूर छटक जाता है
अच्छाई की हर कोशिश
नाकामयाब ही रहती है
हर पल रखो सोच सही
पर दुनिया फिर भी जलती है
मनोभाव सबके, मन पढ़ कर आ जाता है
अंतरमन में फिर कुछ चटक सा जाता है
खुशियों का बनबास रही
जिंदगी बस प्यास रही.
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