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Saturday, 20 August 2016

आया था इस बार भी सावन

गुत्थियों सा है जीवन
जिनका हल ढूंढते -ढूढते
उलझ सा गया है मन
आभास था
अह्सास कब हो पाया ,अब जाने को भी है
आया था इस बार भी  सावन
हरे -हरे अंधेरों से पटे पड़े खेत
धूप में चमचमाता, ठहरा ,,,चाँदी सा पानी
पपीहे का स्वर हो या कीटों की मधुर झंकार
कागज़ की नावें, उनमें रखी पत्तों की पतवार
सब गायब होने को है ,अब जाने को भी है
आया था इस बार भी सावन
राखियों से सजी मनमोहक दुकानों को खूब निहारा                                      
खरीदा और लिफाफे में डाल भेजा भी
सिंधारे की बँटी  मिठाईभी खाई ,घेवर की खुशबू जैसे हर कोने में समाई
कुछ समझ में आया तो  'वीर' की याद बहुत आई
आँखें भी नम  होने को हैं   ,अब जाने को भी है
आया था इस बार भी सावन

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