सभी की जिंदगी का कोई न कोई मकसद जरूर होता है और उसी के लिए सभी दिन-रात एक किये रहते हैं। हम चाहें जितना काम कर लें ,सफल हों या असफल। .... मगर समाज में फैली सम्वेदनहीनता का आलम ये है कि गैरों से क्या अपनों से तक प्रसंशा या प्रोत्साहन के दो शब्द सुनने को नहीं मिलते। इंसान इतना अकेला हो चला है कि अगर कोई परेशानी आकर घेर ले तो सिवाय उसकी परछाई के उसके साथ कोई खड़ा नजर नहीं आता। हर आदमी तनाव और दुःख से भरा गुस्से में दिखाई पड़ता है। सकूँ पाने के लिए व्यक्ति इधर-उधर हाथ -पावँ मार रहा है। कहीं सुन लिया या पढ़ लिया कि - शीशे के सामने खड़े होकर मुस्कराने का अभिनय करने से सकूँ मिल जाएगा। तो फिर इसी प्रयास में लगा रहता है कि शायद चेहरे पर रौनक लौट आये ,शायद जिंदगी में ख़ुशी वापस आ जाये। लेकिन ऐसा सम्भव है क्या ? आखिर लौटना हमें उसी वातावरण में है , उन्ही लोगों में है जहां से भाग कर वह नुस्खा आजमा रहे थे ,
अगर जिंदगी में वाकई खुशहाली चाहिए तो उसके लिए एक मकसद बनाना पड़ेगा। क्यों कि जब तक हम यह नहीं चाहेंगे कि हमारे आलावा भी लोग खुश रहें तो सिवाय तकलीफों के कुछ हासिल नहीं होगा। अगर हमारा उद्देश्य यही है कि मेरे सिवाय कोई सफल न हो ,सम्पन्न न हो ,सम्मानित न हो ,तो यह चाहत पूरी होने में कठिनाई तो आएगी ही फिर मन तनाव ,दुःख, घृणा की जलन से भर उठेगा। अगर वाकई लोगों को ख़ुशी चाहिए शांति चाहिए तो खुशियां बांटनी होंगी ,वैसा माहौल बनाना होगा। यकीन मानिए जिंदगी खुशियों से गुलजार हो जाएगी।
हम सभी अपने घरों की साफ - सफाई इसी लिए करते हैं जिससे घर का वातावरण शुद्ध रहेगा ,घर में सकारात्मकता आएगी और तन - मन भी स्वस्थ रहेंगे। लेकिन मन की झाड़ - पोंछ पर कोई ध्यान नहीं देता जब कि सबसे ज्यादा निगेटिविटी ,सबसे ज्यादा अँधेरा तो वहीं भर हुआ है। जब तक इंसान 'जिओ और जीने दो 'को अपना गोल अपना टारगेट नहीं बनाएगा सारी अचीवमेंट्स धरी रह जाएँगी। दूसरों के बारे में भी सोचना यह भी एक चैलेंज है ,एक अभियान है ,कदम आगे तो बढ़ाइये देखिये जिंदगी कैसे बदलती है। ख़ुशी बन कर दूसरों की जिंदगी में प्रवेश करिये आशावादी बनिये, आशाएं जगाइए। थोड़ा मुश्किल जरूर है पर नामुमकिन नहीं। अगर हम चाहते हैं ये दुनिया वाकई जीने लायक रह जाये तो पहल तो करनी पड़ेगी।
दूसरों से ज्यादा उम्मीद मत बांधिए वल्कि दूसरों की उम्मीद खुद बन जाइए ,सारे दुःख -दर्द अपने आप स्वाहा हो जायेंगे। आपका मन इतना निर्मल।
इतना पावन हो जायेगा। जहां द्वेष की क्लेश की कोई गुंजाइश नहीं होगी , किसी से कोई अपेक्षा नहीं होगी तो खुद किसी से उपेक्षित भी महसूस नहीं करेंगे। ऐसे इंसान को सुखी होने से ,शांत होने से कौन रोक सकता है ?फिर न कोई अँधेरा होगा न कोई भय होगा। हर समस्या से सामना करने की हिम्मत खुद व् खुद आ जाएगी वल्कि आप दूसरों के लिए खुद ही समाधान बन जायेंगे। ऐसा उत्थान ,ऐसी प्रगति किसी भी प्रगति से उच्च होगी ,उत्तम होगी ,सर्वोत्तम होगी।
हम सभी अपने घरों की साफ - सफाई इसी लिए करते हैं जिससे घर का वातावरण शुद्ध रहेगा ,घर में सकारात्मकता आएगी और तन - मन भी स्वस्थ रहेंगे। लेकिन मन की झाड़ - पोंछ पर कोई ध्यान नहीं देता जब कि सबसे ज्यादा निगेटिविटी ,सबसे ज्यादा अँधेरा तो वहीं भर हुआ है। जब तक इंसान 'जिओ और जीने दो 'को अपना गोल अपना टारगेट नहीं बनाएगा सारी अचीवमेंट्स धरी रह जाएँगी। दूसरों के बारे में भी सोचना यह भी एक चैलेंज है ,एक अभियान है ,कदम आगे तो बढ़ाइये देखिये जिंदगी कैसे बदलती है। ख़ुशी बन कर दूसरों की जिंदगी में प्रवेश करिये आशावादी बनिये, आशाएं जगाइए। थोड़ा मुश्किल जरूर है पर नामुमकिन नहीं। अगर हम चाहते हैं ये दुनिया वाकई जीने लायक रह जाये तो पहल तो करनी पड़ेगी।
दूसरों से ज्यादा उम्मीद मत बांधिए वल्कि दूसरों की उम्मीद खुद बन जाइए ,सारे दुःख -दर्द अपने आप स्वाहा हो जायेंगे। आपका मन इतना निर्मल।
इतना पावन हो जायेगा। जहां द्वेष की क्लेश की कोई गुंजाइश नहीं होगी , किसी से कोई अपेक्षा नहीं होगी तो खुद किसी से उपेक्षित भी महसूस नहीं करेंगे। ऐसे इंसान को सुखी होने से ,शांत होने से कौन रोक सकता है ?फिर न कोई अँधेरा होगा न कोई भय होगा। हर समस्या से सामना करने की हिम्मत खुद व् खुद आ जाएगी वल्कि आप दूसरों के लिए खुद ही समाधान बन जायेंगे। ऐसा उत्थान ,ऐसी प्रगति किसी भी प्रगति से उच्च होगी ,उत्तम होगी ,सर्वोत्तम होगी।
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