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Saturday, 13 August 2016

कुछ अच्छा सा नहीं लगता...

सुबह आँख खुलते ही सब अच्छा ही हो
मन अच्छा रहता है ;तो दिन अच्छा गुजरता है
लेकिन ,गुमशुदा लोगों ,लाशों के फोटो ,लूट हत्या ,बलात्कार
बस बुराइयों से पटी ख़बरें
पड़ते ही नजर , जो मन को कर दे बेकार
ऐसा अख़बार,कुछ  अच्छा सा नहीं लगता

दुःख बाँटने से घटता है ,ख़ुशी बाँटने  से बढ़ती है
लेकिन ,ये सब कल की बातें हैं
अब इंसान न अपना दुःख ही बाँटना चाहता है न सुख ही
दुःख देते हैं दूसरों को ख़ुशी ,खुशियां देती हैं दूसरों को दुःख
कितनी वहशियाना हो चली है सोच
इंसान होकर ऐसा स्वभाव
यह  व्यवहार, कुछ अच्छा सा नहीं लगता

सत्यमेव जयते यह सदवाक्य अटल है
पर सच्चाई और अच्छाई परेशानी में पड़ी हुई है
खुद को सभ्य -सुसंस्कृत ,धनवान ,भगवान मानने वाले लोग
दूसरों को पल -पल लज्जित ,अपमानित करने वाले लोग
झूठ से सबको विचलित,आश्चर्यचकित करने वाले लोग
भले लोगों को बात-बात पर सिखाने लगें सदाचार
यह शिष्टाचार ,कुछ अच्छा सा नहीं लगता

पीएम से परेशानी, सीएम से परेशानी ,डीएम से परेशानी
सब समस्याओं  के लिए दूसरे ही हैं  जिम्मेदार
खुद के साथ सब करते रहें अच्छा
खुद न सोचें किसी के बारे में एक बार भी
सिर्फ अधिकारों की याद  रहे ,कर्तव्य भूल जाएँ
खुद सम्वेदनहीनता ,गैरजिम्मेदारी का ढीठ सा पुतला
औरों पर कसते रहें हर समय ताने
ऐसा इमोशनल- अत्याचार, कुछ अच्छा सा नहीं लगता

विचारों के बीच चल रही है जंग
कल्पनाओं में विचरती रहती है इनटॉलरेंस
हर पल भय के साये में जीतीं महिलाएं, लड़कियां ,बच्चे
घर ,गली ,ऑफिस ,अपने पराये सब नजर आते दानव
कितनी भी असहष्णुता हो जाये किसी फीमेल के साथ
इंसानियत और शर्म चली जाती है सैर करने बुद्धिजीवियों की
अत्याचारी के लिए फ़ौरन याद  आ जाते हैं मानवाधिकार
यही इनटॉलरेंस है कि मन में दया- करुणा की जगह भरे पड़े हैं कुविचार
अच्छे कल के लिए बहुत जरूरी हैं निर्मल होने विचार
सही सोच का हमेशा तिरस्कार, कुछ अच्छा सा नहीं लगता

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