अधिकतर लोगों की नजर में बाबा स्त्री वेश धरने के कारण हंसी के पात्र बने हुए हैं .बाबा का कहना है- कि सरकार उन्हें मरवाना चाहती थी और इल्जाम भीड़ पर डालना चाहती थी .दुर्भाग्यवश यदि ऐसा हो जाता तो म्रत्यु पर भी तरह -तरह के सवाल उठते .हो सकता है उसे कायरतापूर्ण मौत ही करार दे दिया जाता .ऐसे में आसानी से खुद को मौत के हवाले करने से भागना ही अच्छा था.बाबा ने स्त्रियों के वस्त्र पहनकर कोई कायरतापूर्ण कार्य नहीं किया है वल्कि ये तो बहुत ही साहसपूर्ण कार्य है क्यों कि उनके स्थान पर कोई और रहा होता तो ऐसा करने से पहले सौ बार सोचता और कर भी लेता तो अब तक घर में मुहं छुपा कर बैठा होता .
स्त्रियाँ पुरषों जितनी दम्भी ,अहिंसक और आततायी कभी नहीं हो सकती .प्रेम अहिंसा ,मानवता ,दयालुता ,परोपकार जैसे गुण पुरषों से कहीं ज्यादा स्त्रियों में होते हैं .भगवन राम ,श्री क्रष्ण ,महात्मा बुद्ध इनके विषय में भी कहा जाता है कि इनमें स्त्रियों वाले गुण थे सिर्फ इस लिए क्यों कि उनकी भावनाएं उतनी ही कोमल थीं जितनी कि स्त्रियों की होती हैं तो क्या वे मैदान छोड़ कर भागे थे ?नहीं ,श्री क्रष्ण से बड़ा कूतनीतिग्य तो न इस संसार में पहले कभी हुआ था और न ही कभी होगा .मै इनसे बाबा की तुलना नहीं कर रही हूँ ,तुलना हो भी नहीं सकती बस इतिहास याद दिला रही हूँ .
मुझे नहीं लगता कि बाबा ने स्त्री वेश धारण करके कोई कायरता पूर्ण कार्य किया है .सारी दुनिया के सामने सीना तान कर यह कहना कि -हाँ मैंने माँ -वहिनों के कपड़े पहने और उस वेश में सारी दुनिया ने भी देखा हो ये बहुत ही हिम्मत का काम है और इस काम को कोई विरला ही अंजाम दे सकता है ,सबके बस की बात नहीं है स्त्री वेश धारण करना .
आचार्य बालक्रष्ण की नागरिकता पर भी प्रश्न उठने लगे है लेकिन वंग्लादेश से आये शरणार्थी तो न सिर्फ जवर्द्स्ती घुस आये हैं वल्कि वे सारे अधिकार भी पा गये हैं जो एक भारतीय नागरिक को प्राप्त होते हैं .उसके बारे में इसलिए कुछ नहीं बोला गया क्यों कि वे विशेष दलों के बोट बैंक बन गये हैं ?
जैसे आज सरकार बाबा के पीछे पड़ गयी है कि ऐसा कोई सवूत हाथ लग जाये जिससे बाबा पर नकेल कसी जा सके ,कभी देश के दुश्मनों के पीछे तो ऐसी तत्परता नहीं दिखाई .१९७१ के एक युद्ध बंदी की पत्नी ने मीडिया से कहा था कि-अगर उसके बेटा होता तो चाट का ठेला लगबा देती लेकिन उस देश की सीमा पर कभी नहीं भेजती जिस देश की सरकार इतनी गैर जिम्मेदार ,संवेदनहीन ,निकम्मी ,गूंगी और बहरी हो .९३,०००पकिस्तानी सैनिक इंदिरा जी ने लौटा दिए लेकिन सौ से भी कम अपने सैनिक वो पकिस्तान से नहीं ले पायीं इसे क्या कहा जायेगा -अति उत्साह ,बेबकूफी या दरियादिली ?जैसा रवैया पकिस्तान के प्रति कांग्रेस सरकारों का रहा है उसके चलते सेना पर क्या बीतती होगी बही जानती होगी तभी तो उसे बोट देने का अधिकार नहीं दिया गया है क्यों कि निकम्मे लोग उसे नहीं चाहिए .
सुनील कुमार नाम के शख्स ने जनार्दन दूवेदी को जूता दिखाया यह बाकई अशोभनीय कार्य है लेकिन विचारणीय तथ्य यह भी है कि वो ऐसा करने को मजबूर क्यों हुआ ? दिग्विजय जी ने जिस तरह आगबबूला होकर उसे लतियाया ,वहाँ मौजूद लोगों ने भी जम कर उसे पीटा यह भी तो शोभनीय कार्य नहीं था आखिर पुलिस तो अपनी कार्यवाही करती ही ना .कभी किसी आतंकवादी को जिसने यहाँ के निर्दोष लोगों का खून बहाया हो उसके लिए तो एक शब्द भी मुहं से नहीं निकलता क्यों ?स्वार्थ ध्यान में रहते हैं या फिर अपनी गली में कुता भी शेर होता है ?.
स्त्रियाँ पुरषों जितनी दम्भी ,अहिंसक और आततायी कभी नहीं हो सकती .प्रेम अहिंसा ,मानवता ,दयालुता ,परोपकार जैसे गुण पुरषों से कहीं ज्यादा स्त्रियों में होते हैं .भगवन राम ,श्री क्रष्ण ,महात्मा बुद्ध इनके विषय में भी कहा जाता है कि इनमें स्त्रियों वाले गुण थे सिर्फ इस लिए क्यों कि उनकी भावनाएं उतनी ही कोमल थीं जितनी कि स्त्रियों की होती हैं तो क्या वे मैदान छोड़ कर भागे थे ?नहीं ,श्री क्रष्ण से बड़ा कूतनीतिग्य तो न इस संसार में पहले कभी हुआ था और न ही कभी होगा .मै इनसे बाबा की तुलना नहीं कर रही हूँ ,तुलना हो भी नहीं सकती बस इतिहास याद दिला रही हूँ .
मुझे नहीं लगता कि बाबा ने स्त्री वेश धारण करके कोई कायरता पूर्ण कार्य किया है .सारी दुनिया के सामने सीना तान कर यह कहना कि -हाँ मैंने माँ -वहिनों के कपड़े पहने और उस वेश में सारी दुनिया ने भी देखा हो ये बहुत ही हिम्मत का काम है और इस काम को कोई विरला ही अंजाम दे सकता है ,सबके बस की बात नहीं है स्त्री वेश धारण करना .
आचार्य बालक्रष्ण की नागरिकता पर भी प्रश्न उठने लगे है लेकिन वंग्लादेश से आये शरणार्थी तो न सिर्फ जवर्द्स्ती घुस आये हैं वल्कि वे सारे अधिकार भी पा गये हैं जो एक भारतीय नागरिक को प्राप्त होते हैं .उसके बारे में इसलिए कुछ नहीं बोला गया क्यों कि वे विशेष दलों के बोट बैंक बन गये हैं ?
जैसे आज सरकार बाबा के पीछे पड़ गयी है कि ऐसा कोई सवूत हाथ लग जाये जिससे बाबा पर नकेल कसी जा सके ,कभी देश के दुश्मनों के पीछे तो ऐसी तत्परता नहीं दिखाई .१९७१ के एक युद्ध बंदी की पत्नी ने मीडिया से कहा था कि-अगर उसके बेटा होता तो चाट का ठेला लगबा देती लेकिन उस देश की सीमा पर कभी नहीं भेजती जिस देश की सरकार इतनी गैर जिम्मेदार ,संवेदनहीन ,निकम्मी ,गूंगी और बहरी हो .९३,०००पकिस्तानी सैनिक इंदिरा जी ने लौटा दिए लेकिन सौ से भी कम अपने सैनिक वो पकिस्तान से नहीं ले पायीं इसे क्या कहा जायेगा -अति उत्साह ,बेबकूफी या दरियादिली ?जैसा रवैया पकिस्तान के प्रति कांग्रेस सरकारों का रहा है उसके चलते सेना पर क्या बीतती होगी बही जानती होगी तभी तो उसे बोट देने का अधिकार नहीं दिया गया है क्यों कि निकम्मे लोग उसे नहीं चाहिए .
सुनील कुमार नाम के शख्स ने जनार्दन दूवेदी को जूता दिखाया यह बाकई अशोभनीय कार्य है लेकिन विचारणीय तथ्य यह भी है कि वो ऐसा करने को मजबूर क्यों हुआ ? दिग्विजय जी ने जिस तरह आगबबूला होकर उसे लतियाया ,वहाँ मौजूद लोगों ने भी जम कर उसे पीटा यह भी तो शोभनीय कार्य नहीं था आखिर पुलिस तो अपनी कार्यवाही करती ही ना .कभी किसी आतंकवादी को जिसने यहाँ के निर्दोष लोगों का खून बहाया हो उसके लिए तो एक शब्द भी मुहं से नहीं निकलता क्यों ?स्वार्थ ध्यान में रहते हैं या फिर अपनी गली में कुता भी शेर होता है ?.
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