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Saturday 21 January 2012

फिर भागीरथ से कहो गंगा की धारा चाहिए !!!...

एक ओर अन्ना हजारे जी ने देश के भ्रष्टाचारियों के खिलाफ विगुल फूँक दिया है, बहीं नवरात्र के व्रतों में कुट्टू के आटे में मिलावट के चलते सेकड़ों लोग जिन्दगी ओर मोत से जूझ रहे है. मिलाबट है कहाँ नहीं ? दूध, अनाज, मसाले, घी, तेल, मावा, मिठाई, पेट्रोल, डीजल इन सब में मिलाबट हैं. ये मिलाबट खोर कहीं उच्च तबके से नहीं आते, ये वे लोग हैं जिन्हें हम भोला - भाला मासूम समझते हैं. सच तो ये है कि मासूमियत अब रही ही कहाँ है अब तो हर जगह हैबानियत हावी है.
मिलाबट सिर्फ चीज़ों में ही नही हैं बल्कि हमारे चरित्र में ही हैं तभी तो जमीन या पैसे की खातिर बेटे अपने माता - पिता को  मोत की नींद सुला रहे हैं, भाई -भाई को काट रहा है, पति को पत्नी से नही दहेज़ से प्यार है. हर तरफ पैसे का ही खुमार हैं. चैन खींचना, बाइक या गाड़ियाँ उठना, फिरोती के लिए बच्चे ओर बूढों तक को उठा कर उन्हें नारकीय जिन्दगी जीने को मजबूर करना ये सब भ्रष्ट आचरण और राक्षसी प्रब्रति के ही उदाहरन हैं.
कुछ साल पहले कवि शैल चतुर्बेदी के बेटों ने एक एल्बम निकाला था " राम भरोसे हिंदुस्तान" जो बहुत पसंद किया गया था. कभी - कभी लगता हैं कि हिन्दुस्तान बाकई राम भरोसे ही चल रहा है. गावों के विकास के लिए सरकार जम कर पैसे दे रही है लेकिन वो पैसा सिर्फ चंद लोगों के ऐशो - आराम  के लिए ही काम आ रहा है.

ग्राम प्रधान का चुनाव लड़ने वाले लोग जादातर ऊँचे रसूख वाले  वाले नही होते हैं लेकिन अब उनका राजनीति करने का तरीका देखिये- चुनाव से ढीक पहले एक दूसरे के खिलाफ खूब अफबाहें उड़ा कर बाजी उलट - पलट करना भी उन्हें आ गया है. प्रचार का तरीका देखिये- घर की बहू बेटियों पर लांक्षन लगाने से भी नहीं चूक रहे हैं. नफरत की  हद ये हो गयी हैं की एक प्रधान ने विधायक को बड़ी रकम देकर अपने कोटे दार से बदला लेने का अच्छा तरीका सोचा, कोटा उसकी पत्नी के नाम था उस बेचारी को बिना कुछ किये धरे जेल जाने की नौबत आ गयी. विधायक को समझाने के लिए प्रशासनिक अधिकारियों ने पूरी ताकत झोंक दी, कोटे दार की जेब भी खाली हो गयी तब जाकर विधायक ने मामले को रफा दफा होने दिया. ये घटना हमें यही बताती है की आज आदमी इतना नीचे गिर गया है कि उसे सिर्फ अपने अहम् की तुष्टि और पैसे के अलावा कुछ और दिखाई ही नहीं दे रहा है. ऐसा लगता है की हर आदमी एक अंधी दौड़ में शामिल है, अपने आस - पास क्या हो रहा है, क्या हो सकता है? इससे उसे कोई मतलब नहीं है.
डॉ. निशांत असीम ने लिखा है-
चंद इंसा रह गये, इंसान जब से मर गये
फिर भागीरथ से कहो, गंगा की धारा चाहिए
काश! की ऐसा मुमकिन हो पाता की भागीरथ फिर से इस धरती पर आ पाते और मरी हुई इंसानियत पुनर्जीवित हो उठती, और  खिल उठता वो जीवन जो करहाने को मजबूर है.
लेकिन ऐसा हो नहीं सकता. जो भी करना है, जैसे भी करना है, वो हमें ही करना है और शुरूआत पहले खुद से ही करनी होगी. 

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