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Saturday 21 January 2012

क्या ईश्वर भी भेद - भाव करता है ?

कहते हैं कोई तो चमत्कारिक शक्ति है उपर, जो दुनिया को चला रही है वह शक्ति राई को पर्वत और पर्वत को राई कर सकती है, उसकी महानता और शक्ति अपरम्पार है उसकी नजरों से कुछ भी बचा नही है, दार्शनिक,संत - फकीर जन कहते है कि अपने स्वार्थों कि पूर्ति हेतु जो आराधना दुनिया बाले करते हैं वो झूंठी है और झूठे ईश्वर की है, उस महान ईश्वर कि नही  जो दुनिया को बास्तव मैं चला रहा है वो दयालु है न्याय कारी है I जो लोग उस शक्ति पर विश्वास नही करते वे नास्तिक हैं, ऐसे लोग नरक को प्राप्त होते है I जब कोई व्यक्ति परेशान होता है तब वह ईश्वर को याद करता है और उम्मीद करता है कि उसके दिन भी अच्छे आयेंगे और जब ऐसा नही होता तो वह कहता है - कि ईश्वर है ही नहीं I भर - पेट खाने वाले लोग भूखे पेट वालों से कहते हैं कि ईश्वर उन्ही की सहायता करता है जो अपनी सहयता आप करते है, जरूर मेहनत मैं कहीं कमीं रह गयी होगी जो तुम्हें रोटी नसीब नहीं है I
                 कमाल है जो आदमी अपनी खुद मदद कर रहा है उसे क्या जरूरत है ईश्वर की, जरूरत उस बेवस- लाचार को है जो सारे दिन की मेहनत के बाद भी दो - जून की रोटी नही खा पाता. कुछ दिनों पहले की एक घटना है जो किसी के भी अंतरमन को हिला सकती है पता नही ईश्वर को क्यों नही हिला पाई? एक सात बर्षीय मासूम को कुछ दरिंदों ने अपना शिकार बनाया, उसने चिल्लाने की कोशिश की होगी तो उसकी जीभ काट ली I उस मासूम ने अपनी मदद की ही तो कोशिश की होगी फिर ईश्वर ने जो दयालु और न्यायकारी है उसकी कोई मदद क्यों नही की? संत- फकीर, विचारक कहेंगे की जरूर उसने पाप - कर्म किया होगा जो उसे इतनी बड़ी सजा मिली, अगर ईश्वर बास्तव मैं असीम शक्तियों से परिपूर्ण है तो वह कुछ भी कर सकता है, और ये कहाँ का न्याय है कि पाप - कर्म पिछले जनम मैं हो और सजा इस जनम मैं मिले, अगर व्यक्ति के पाप - कर्मों कि सजा उसी जीवन मैं मिले जिस जीवन मैं किया गया हो और जब जीव सजा भुगत रहा होगा तो उसे अपने कुकर्मों पर अफसोस तो होगा, और दूसरे जनम मैं जब व्यक्ति को कुछ याद भी नही है तब उसे सजा मिले और वो भी तीन या सात साल कि उम्र में, इतनी भयानक और दर्दनाक सजा यह ईश्वरीय न्याय नही हो सकता, ईश्वर इतना निर्दयी नही हो सकता, और जो लोग उस मासूम के अपराधी है वे चैन से जी रहे है ये इश्वर का कैसा न्याय है? ऐसी अनगिनत घटनाएँ दुनिया भर मैं घट चुकी है  जब ईश्वर के लिए मदद के लिए आगे आना चाहिए था और वह नही आया, फिर तो ईश्वर से विश्वास उठना स्वाभाविक ही है. और ये मानना ही पड़ेगा कि ईश्वर सब की मदद नही कर सकता सिर्फ उन्ही की ही कर सकता है जो अपनी मदद खुद करते है और पार पा जाते हैं .                      

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