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Saturday 21 January 2012

फरहा,केटरीना ये क्या हो रहा है?

समाज की बिडम्वना देखो लोग फिल्मों पर तो बात करते हैं पर अश्लीलता पर बात बिलकुल  नही  करते, माडल्स की बात करते हैं लेकिन नग्नता प्रदर्शन की बात बिलकुल नहीं करते,  फिल्में समाज पर कुप्रभाव डाल रहीं हैं ये सिर्फ सोचते भर हैं लेकिन बोलना पसंद बिलकुल नहीं करते. घर में पूरा परिवार साथ बैठ कर टी.वी  भी नहीं देख सकता फिर क्या हर सदस्य के लिए अलग टीवी रखना चाहिए? या फिर भारतीय  समाज इतना आगे बढ गया है की रिश्तों की मर्यादा के बीच की सीमा रेखा पार कर गया है. टी.वी पर चाहे फिल्मी चैनल हो म्यूजिक चैनल हो फॅमिली ड्रामा हो, या फिर न्यूज़ चैनल क्यों न हो परिवार के साथ बैठकर देखने लायक कुछ भी नहीं होता .न्यूज़ चैनलों ने तो हद ही कर दी है बस सनसनाते कार्यक्रमों के फेर में  भूत-प्रेत, तंत्र-मंत्र, अपराध और मसालेदार ख़बरें बस इतना ही इनका मकसद रह गया है  शिवसेना, बजरंग दल पश्चिमी संस्क्रति के नाम पर हो -हल्ला करते रहते हैं लेकिन यदि फिल्मों और टी.वी पर छाई अश्लीलता का विरोध करते तो कितना अच्छा होता? गावं- गावं, शहर-शहर आन्दोलन छेड़ते. पेड़ बचाओ आन्दोलन हो सकता है, बेटी बचाओ आन्दोलन भी चल सकता है तो अश्लीलता भगाओ आन्दोलन क्यों नहीं?और जो कोई इसका विरोध करता  तो ये भी सामने आ जाता की अश्लीलता का पक्षधरकौन-कौन है? महाराष्ट्र के प्रिन्स राजठाकरे भी उत्तरप्रदेश व् बिहार के  लोगों का विरोध ना कर, यहाँ से गये कलाकारों का बिरोध ना कर बॉलीवुड में हर  तरफ छाई नग्नता काबिरोध करते तो अब तक देश के हीरो बन गये होते.
अगर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर बॉलीवुड बाले रोना रोयें तो मीडिया को आगे आकर उनसे सवाल करने ही चाहिए क्यों की ये समाज के भविष्य का प्रश्न है. मलाइका अरोरा सलीम साहब की पुत्र -वधु है, अरवाज की पत्नी है और सलमान की भाभी हैं  अच्छे - भले घर की वहू हैं. नए साल के जश्न मैं इतने छोटे कपडे पहन कर डांस कर रही थीं आखिर जताना क्या चाहती हैं?. छोटे कपडे पहनने से या ऊट-पटांग सीन करने भर से फ़िल्म हिट नहीं होती. आज कल आईटम सान्ग का जमाना है. आइटम गानों जैसे ही कुछ गाने माधुरी और करिश्मा पर भी फिल्माए गये थे .फ़िल्म में ऐसे गाने होने की डिमांड से इन्दीवर और आनंदवक्शी जैसे महान गीतकार भी खुद को नही बचा पाए थे पर ये गाने शायद ही किसी को याद रह गये गये हैं . 'जो दिखता है सो बिकता है' इस पर हमारे निर्माता-निर्देशक कितना ही जोर दे लें पर इन गानों की और ऐसी फिल्मों की उम्र बहुत छोटी होती है . .मुन्नी, शीला और मंजन जैसे गानों पर बक्त की धूल बहुत जल्दी जमने वाली है .पता नहीं   कैटरीना जैसी अभिनेत्री और फरहा खान जैसी कोरिओग्राफर को क्या सूझी जो शीला जैसा गाना उन्होंने चुन लिया. इनकी प्रतिभा पर किसी को संदेह हो सकता है क्या? जो ये गाना इनकी उपलब्धि में चार-चाँद लगाएगा. सच्चाई तो ये है की ' जो चलता है सो बिकता है ' और चलता वही है जिसमें प्रतिभा हो अगर ऐसा ना होता तो किमीकाटकर, अर्चना-पूर्ण सिंह, ममता कुलकर्णी, पूजा भट्ट, नेहा धूपिया, तनुश्री दत्ता, उदिता गोस्वामी आज शीर्ष पर होती.

                    जब भी किसी फ़िल्म पर हंगामा होता है या बॉलीवुड से जुडी कोई और बात होती है तो मीडिया बुद्धिजीवियों को याद करता है उनमें महेश भट्ट प्रमुख होते है. महेश भट्ट समाज को क्या दिशा देंगे? ये उनके संस्कार है जो उनकी बेटी ने सार्वजानिक रूप से ये कहा था - कि महेश भट्ट गर पिता ना होते तो वो उनसे विवाह कर लेती, कहने को तो वह ये भी कह सकती थी कि प्रत्येक जनम में वह उन्ही कि बेटी बनना चाहती है. एक बार महेश भट्ट से ये पूंछा गया था कि - फिल्मों में बढ़ती अश्लीलता के विषय में आप क्या सोचते है? इस पर उनका जबाब था "कि किस अश्लीलता की बात करते हैं अश्लीलता पुराने समयं से ही रही है क्यों कि यहाँ खजुराहो मंदिर है" लेकिन खजुराहो मंदिर प्रत्येक व्यक्ति  कि पहुँच  में तो नही है.ऐसे ही एक बार चरित्र अभिनेता अनुपम खेर से भी बीबीसी के एक कार्यक्रम में ऐसा ही पूछा गया था .पूछने वाले को उन्होंने बड़े ही तल्ख़ अंदाज में बड़ा बेतुका
जबाब दिया था -आपसे किसने कहा है फिल्म देखने के लिए आप भक्तिसंगीत सुनिए और भक्तिनुमा फ़िल्में देखिये और अपना नाम भी बदल दीजिये क्यों कि जो आपका नाम है वहबॉलीवुड के एक अभिनेता का नाम है .इनसे इस तरह की बात करो तो दर्शक चेंज चाहते हैं .परिवर्तन प्रक्रति का नियम है ऐसा कह कर अपनी बात को सही ठहराने की कोशिश करते हैं .पता नहीं मीडिया क्या करता रहता है इन्हें ढंग से घेरता क्यों नहीं ?इनकी बेतुकी बातों को हम तक पहुंचा दिया जाता है इनसे कोई ये सबाल क्यों नहीं करता कि-मान लिया खजुराहो एक गलती है. लेकिन वे समाज में गंदगी फ़ैलाने का काम क्यों कर रहें हैं ?.टी.वी ऑन करते ही खजुराहो नहीं दीखता लेकिन इनके दुआरा जो कुछ दिखाया जा रहा है तुरंत दिखता है .ऐसा नहीं है कि फ़िल्में अच्छा संदेश देती ही नहीं हैं पर ऐसा लग रहा है कि हालीवुड पर बॉलीवुड भरी पड़ रहा है दमदार कहानी ,गजब कि कल्पनाशीलता ,बेहतर तकनीक और भव्यता में नहीं सिर्फ नग्नता में .सोचने कि जरूरत तो है समाज को ,मीडिया को ,और खुद बॉलीवुड को भी . 

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