बड़े ही दुःख और आश्चर्य की बात है कि इक्कीसवीं सदीं का आधुनिक समाज अब भी अन्धविश्वास और जादू -टोने में जकड़ा हुआ है .आये दिन समाचारपत्रों में तांत्रिकों दुआरा लोगों को हर तरह से ठगे जाने के किस्से पढने को मिलते रहते हैं .कुछ दिन पहले टी .वी पर कोड़े बरसा कर कोई भी बीमारी ठीक करने का दाबा करने वाले तांत्रिक के वारे में दिखाया जा रहा था हांलांकि उस चैनल कि पहल पर ही उसे गिरफ्तार भी कर लिया गया था .
आज के समय में व्यक्ति पर इतना दवाव है कि अच्छे -भले आदमी का दिमाग तक पगलाने लगता है ,ऐसे में शांति और धैर्य से काम लेने की जरूरत होती है न कि किसी जादू -टोने के चक्कर में पड़ने की,यदि तांत्रिकों के पास वाकई चमत्कार करने की शक्ति होती तो सबसे पहले वे स्वयं का जीवन संबारते,संसार के सबसे सुखी इंसान होते ,क्यों वेकार ही दूसरों को बेवकूफ बनाने की तरकीबें सोचते रहते ?
जब हम समस्याओं से घिरे होते हैं तब हमें कुछ नहीं सूझता जो जैसा बताता है वैसा करने को तैयार हो जाते हैं. लेकिन बस थोड़ा सा दिमाग लगाने की जरूरत होती है कि सामने वाले के पास जादू की छड़ी है क्या ?तांत्रिक भी जानते हैं की सब तरफ से थका-हारा व्यक्ति ही उनके पास पहुँचता है .और वो जो -जो बताते जाते हैं कि तुम्हारे साथ ये हुआ ,ऐसा हुआ तो लोग समझते हैं कि ये तो अन्तर्यामी है ,जिस पर गुजरती है वही जानता है ये बात सच है, लेकिन उतार -चढ़ाव सबकी जिन्दगी में आते हैं किसी के कम तो किसी के ज्यादा .
सुना है एक धर्मस्थल पर सभी धर्मों के लोंगों की आस्था है विशेषकर महिलाओं की .वहाँ इतनी भीड़ रहती है कि पुलिस को सारे दिन वाहनों की आवाजाही के लिए काफी मशक्कत करनी पडती है .चूंकि ये स्थल शहर से बाहर है तो चारों तरफ घने पेड़ और खेत हैं दिन में तक वहाँ अँधेरा छाया रहता है .वहाँ के खेतों में अक्सर उन लड़कियों की लाशें मिलती हैं जिन्हें उनके परिवार वाले वहाँ इलाज के लिए लाये होते हैं .कई वार मानसिक रूप से विक्षिप्त खुद ही भाग जातीं हैं और फिर नहीं लौट पातीं और कुछ गायब कर दी जातीं हैं .गाँव के लोगों ने भी एकता बना रखी है कि लाश मिलते ही सब मिल कर ठिकाने लगा देतें हैं .उनका मानना है कि अगर पुलिस को खबर की तो खुद ही उलटे फंसेगें. ऐसा भी नहीं है कि इस बात की किसी को भनक न हो फिर क्यों वेकार पचड़े में पड़ें .एक व्यक्ति ने कई वार महिलाओं को समझाने की कोशिश भी की उसका कहना था कि-ये मानसिक रूप से बीमार हैं इन्हें इलाज कि जरूरत है न कि यहाँ रखने की, उसकी किसी ने नहीं सुनी तो वह एक पत्रकार के पास पहुंचा .पत्रकार ने भी हाथ जोड़ लिए कहा -ये बहुत ही सम्बेदनशील मसला है इसे छुआ भी तो न जाने कितना खून -खराबा हो जायेगा उपर से राजनीती होगी सो अलग ,इससे तो चुप रहना ही बेहतर है .
कुछ साल पहले सहारनपुर से निकले निर्माता -निर्देशक मनोज नौटियाल ने एक सीरियल बनाया था 'लेकिन वो सच था ' उसमें उन्होंने चमत्कारों की पोल खोल के रख दी थी .ऐसे ही अभियान की आज भी जरूरत है .अगर जादू -टोने से कुछ हो ही जाता तो सबसे पहले राजनीतिक दल एक दुसरे को नहीं छोड़ते ,फिर कुर्सी कभी किसी पर होती तो कभी किसी पर .नम्बर एक के पायदान पर पहुंचा अभिनेता आखिरी पायदान पर आ जाता .ऐश्वर्या को नजर लगी होती तो कभी तबियत ठीक ही नहीं होती .ऐसा नहीं है कि ये लोग इस चक्कर में नहीं पड़ते ,जरूर पड़ते हैं लेकिन कभी नुक्सान नहीं उठाते ,नुक्सान आम आदमी ही उठाता है .
लोगों में जागरूकता लानी बहुत जरूरी है .जगह -जगह नुक्कड़ नाटक किये जा सकते हैं .अन्धविश्वास से सम्बन्धित पाठ पाठ्यक्रम में में रखा जा सकता है . सबसे ज्यादा जो कर सकता है वो मीडिया ही है जो ये कह देता है व्ही सब बोलने और सुनने लगते हैं .सबसे पहले टी .वी .पर जो भ्रामक प्रचार दिखाए जाते हैं उन पर रोक लगनी चाहिए .स्वयंसेवी संस्थाएं भी आगे आ सकतीं हैं और लोगों को बेहतर तरीके से समझा सकती हैं .उनको ये समझाना बेहद जरूरी है कि जीवन और जीवन में आने वाले संघर्ष कडबे सच हैं ,और जो समस्याएं जिसके सामने हैं उसे ही झेलनी हैं ,कोई जादू -टोना इस सच्चाई को बदल नहीं सकता है .जो आज है वो कल नहीं रहेगा चाहे दुःख हो या सुख हो ,देर -सवेर समय बदलना ही है .डॉ कुंअर बेचैन का शेर भी इसी सच्चाई को सामने रखता है -
इन दुखों के कैदखानों में भी बस चलते रहो
है अभी दीवार, आगे खिड़कियाँ भी आ जायेंगी.
आज के समय में व्यक्ति पर इतना दवाव है कि अच्छे -भले आदमी का दिमाग तक पगलाने लगता है ,ऐसे में शांति और धैर्य से काम लेने की जरूरत होती है न कि किसी जादू -टोने के चक्कर में पड़ने की,यदि तांत्रिकों के पास वाकई चमत्कार करने की शक्ति होती तो सबसे पहले वे स्वयं का जीवन संबारते,संसार के सबसे सुखी इंसान होते ,क्यों वेकार ही दूसरों को बेवकूफ बनाने की तरकीबें सोचते रहते ?
जब हम समस्याओं से घिरे होते हैं तब हमें कुछ नहीं सूझता जो जैसा बताता है वैसा करने को तैयार हो जाते हैं. लेकिन बस थोड़ा सा दिमाग लगाने की जरूरत होती है कि सामने वाले के पास जादू की छड़ी है क्या ?तांत्रिक भी जानते हैं की सब तरफ से थका-हारा व्यक्ति ही उनके पास पहुँचता है .और वो जो -जो बताते जाते हैं कि तुम्हारे साथ ये हुआ ,ऐसा हुआ तो लोग समझते हैं कि ये तो अन्तर्यामी है ,जिस पर गुजरती है वही जानता है ये बात सच है, लेकिन उतार -चढ़ाव सबकी जिन्दगी में आते हैं किसी के कम तो किसी के ज्यादा .
सुना है एक धर्मस्थल पर सभी धर्मों के लोंगों की आस्था है विशेषकर महिलाओं की .वहाँ इतनी भीड़ रहती है कि पुलिस को सारे दिन वाहनों की आवाजाही के लिए काफी मशक्कत करनी पडती है .चूंकि ये स्थल शहर से बाहर है तो चारों तरफ घने पेड़ और खेत हैं दिन में तक वहाँ अँधेरा छाया रहता है .वहाँ के खेतों में अक्सर उन लड़कियों की लाशें मिलती हैं जिन्हें उनके परिवार वाले वहाँ इलाज के लिए लाये होते हैं .कई वार मानसिक रूप से विक्षिप्त खुद ही भाग जातीं हैं और फिर नहीं लौट पातीं और कुछ गायब कर दी जातीं हैं .गाँव के लोगों ने भी एकता बना रखी है कि लाश मिलते ही सब मिल कर ठिकाने लगा देतें हैं .उनका मानना है कि अगर पुलिस को खबर की तो खुद ही उलटे फंसेगें. ऐसा भी नहीं है कि इस बात की किसी को भनक न हो फिर क्यों वेकार पचड़े में पड़ें .एक व्यक्ति ने कई वार महिलाओं को समझाने की कोशिश भी की उसका कहना था कि-ये मानसिक रूप से बीमार हैं इन्हें इलाज कि जरूरत है न कि यहाँ रखने की, उसकी किसी ने नहीं सुनी तो वह एक पत्रकार के पास पहुंचा .पत्रकार ने भी हाथ जोड़ लिए कहा -ये बहुत ही सम्बेदनशील मसला है इसे छुआ भी तो न जाने कितना खून -खराबा हो जायेगा उपर से राजनीती होगी सो अलग ,इससे तो चुप रहना ही बेहतर है .
कुछ साल पहले सहारनपुर से निकले निर्माता -निर्देशक मनोज नौटियाल ने एक सीरियल बनाया था 'लेकिन वो सच था ' उसमें उन्होंने चमत्कारों की पोल खोल के रख दी थी .ऐसे ही अभियान की आज भी जरूरत है .अगर जादू -टोने से कुछ हो ही जाता तो सबसे पहले राजनीतिक दल एक दुसरे को नहीं छोड़ते ,फिर कुर्सी कभी किसी पर होती तो कभी किसी पर .नम्बर एक के पायदान पर पहुंचा अभिनेता आखिरी पायदान पर आ जाता .ऐश्वर्या को नजर लगी होती तो कभी तबियत ठीक ही नहीं होती .ऐसा नहीं है कि ये लोग इस चक्कर में नहीं पड़ते ,जरूर पड़ते हैं लेकिन कभी नुक्सान नहीं उठाते ,नुक्सान आम आदमी ही उठाता है .
लोगों में जागरूकता लानी बहुत जरूरी है .जगह -जगह नुक्कड़ नाटक किये जा सकते हैं .अन्धविश्वास से सम्बन्धित पाठ पाठ्यक्रम में में रखा जा सकता है . सबसे ज्यादा जो कर सकता है वो मीडिया ही है जो ये कह देता है व्ही सब बोलने और सुनने लगते हैं .सबसे पहले टी .वी .पर जो भ्रामक प्रचार दिखाए जाते हैं उन पर रोक लगनी चाहिए .स्वयंसेवी संस्थाएं भी आगे आ सकतीं हैं और लोगों को बेहतर तरीके से समझा सकती हैं .उनको ये समझाना बेहद जरूरी है कि जीवन और जीवन में आने वाले संघर्ष कडबे सच हैं ,और जो समस्याएं जिसके सामने हैं उसे ही झेलनी हैं ,कोई जादू -टोना इस सच्चाई को बदल नहीं सकता है .जो आज है वो कल नहीं रहेगा चाहे दुःख हो या सुख हो ,देर -सवेर समय बदलना ही है .डॉ कुंअर बेचैन का शेर भी इसी सच्चाई को सामने रखता है -
इन दुखों के कैदखानों में भी बस चलते रहो
है अभी दीवार, आगे खिड़कियाँ भी आ जायेंगी.
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